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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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मंगलवार, 16 जुलाई 2019

हम चिड़ियाघर गये!



          इस बार गर्मियों की छुट्टियों में हम बच्चों को लेकर चिड़ियाघर घूमने गए। चिड़ियाघर घूमने की बात सुनकर बच्चों में पहले से ही बहुत उत्साह था। बच्चों ने बहुत दिनों पहले से ही चिड़ियाघर में क्या-क्या देखेंगे इस बारे में अपनी सूचियां बनानी शुरू कर दी थी ।बच्चों ने चिड़ियाघर से संबंधित कई सारी वीडियो यूट्यूब पर देख ली थी और चिड़ियाघर में कौन-कौन से पशु-पक्षी देखने को मिलते हैं, उन सब की सूची बना ली थी और बहुत सारे फोटो सर्च कर लिए थे।
जिस दिन हम चिड़ियाघर घूमने के लिए जा रहे थे, बच्चों ने रास्ते के लिए अपने जरूरी सामान पैक कर लिये व जरूरी खाने का सामान, पानी की बोतलें अपने साथ रख ली थी। चिड़ियाघर जाने के लिए हमने देहरादून स्थित “मालसी डियर पार्क” (जिसका नाम अब “देहरादून जू” हो चुका है) जाने का निर्णय लिया। जब हम सब चिड़ियाघर पहुंचे तो बच्चो को चिड़ियाघर में बहुत सारी चीजें देखने को मिलेगी, ऐसा सोच कर बच्चे  चिड़ियाघर के अंदर जाने के लिए उत्सुक हो रहे थे, परन्तु अन्दर जाने के लिए टिकट की व्यवस्था की हुयी थी, हमने टिकट खरीदें और चिड़िया घर की तरफ जाने के लिए अपने कदम उठाने शुरू कर दिए। बच्चों ने बहुत सारे नए नए जानवर देखें जो उन्होनें पहले कभी नहीं देखे थे, साथ ही साथ पहले से देखे हुये पशु पक्षी भी देखे। जैसे-जैसे बच्चे आगे बढ़ते हुए जा रहे थे |

बच्चों का उत्साह और अधिक पढ़ता जा रहा था।

जैसा कि  चिड़ियाघर नाम से ही पता चल जाता है कि यहाँ बहुत सी चिड़ियायें मिलेंगी सो बच्चों ने  बहुत सारी चिड़ियायें  देखी, जिसमें कई सारे रंग-बिरंगे देशी-विदेशी कबूतर,  टर्की, एमू ,बत्तखे इत्यादि देखें। सबसे अधिक बच्चों को देखने में मजा आया हमारे राष्ट्रीय पक्षी  मोर को देखने में, और जब मोर ने अपने पंख फैलाकर नाचना शुरू किया तो बच्चों की खुशी का ठिकाना ही नही रहा। आगे बच्चों ने और पक्षियों के साथ-साथ “आर्कियोप्टैरिक्स” व “डो-डो” विलुप्त हुये पक्षियों के माड़ल भी देखे। रंग-बिरंगे पक्षियों, उनकी चहचाहट व किलकारियों को देखकर व सुनकर बच्चे बहुत ही प्रसन्नता पूर्वक आगे बढ़ते जा रहे थे।
ओर अधिक पशु-पक्षियों को देखने के उत्साह से आगे बढ़ते  बच्चों ने पहाड़ी बकरियाँ, यामा, बंदर और बहुत सारे हिरन व बारहसिंगे भी देखें। ओर आगे बढ़े तो बच्चों ने कछुए देखें जो पानी व रेत में घूम रहे थे। जब बच्चे मगरमच्छ वाले बाड़े के पास पहुंचे तो वहां बच्चे कुछ निराश हुये क्योंकि वहां पर मगरमच्छ नही थे,  बल्कि उनकी जगह लेकिन मगरमच्छ के स्थान पर केवल मगरमच्छों की पत्थर की प्रतिमाएं रखी हुयी थी। थोड़ा आगे बढ़े तो भालू वाले स्थान पर भालू नही थे। बच्चों ने और भी बहुत सी ऐसी   खाली जगहें देखी जहाँ जो जानवर होने चाहिए थे वे वहाँ नहीं थे। आगे बच्चों ने अपने पिजरे में घूमता हुआ एक तेंदुआ देखा। बच्चे पहले तो उसे देखकर काफी रोमांचित हुये परन्तु उसका गुस्सा व बेचैनी देखकर बच्चों को थोड़ी निराशा हुयी।
 हम और थोड़ा आगे बढ़े तो बच्चों ने वहां पर एक एक्वेरियम देखा। इसमें अंदर जाने के लिए अलग से टिकट लेना पड़ा। बच्चो ने यहाँ बहुत सारी रंग-बिरंगी पानी में अठखेलियां करती हुयी मछलियां व कुछ और पानी के जीव जैसे आक्टोपस, समुंद्री घोड़ा व तारामीन इत्यादि भी देखी जो बच्चों ने पहले कभी नहीं देखी थी। बच्चों को यह एक्वेरियम देखकर बहुत ही आनंद प्राप्त हुआ और जो प्रश्न बच्चों के मन में चिड़ियाघर में आगे बढ़ते हुए उठ गए थे जैसे कि बहुत सारी जगहे चिड़ियाघर में खाली खाली क्यों थी,  बहुत से जानवर खुश क्यों नहीं लग रहे थे,  वे अब कुछ शान्त हो गये थे।
 खैर अब हम सब खुशी-खुशी चिड़ियाघर से वापस लौट रहे थे। बच्चे चिड़ियाघर को देखकर काफी प्रसन्न लग रहे थे। हम भी बच्चों को प्रसन्न देखकर प्रसन्नचित्त मन से वापस लौट रहे थे, परन्तु मन में कुछ प्रश्न अभी भी थे, चिड़ियाघर के वह खाली पिंजरे व बाड़े, बेचैन जानवर,  जानवरो की पत्थर की मूर्तियां जहां पर कभी जिवित जानवर रहते होंगे इत्यादि। बच्चे भी शायद अपने मन में सोच रहे होंगे कि जो चिड़ियाघर के बारे में उन्होने अपनी किताबों, इंटरनेट- यूट्यूब पर देखा था, यह चिड़ियाघर अब वैसे क्यों नहीं रह गये हैं? क्या वैश्विक तापमान एवं पर्यावरण बदलाव व कम होते वन ही इसका भी कारण है?
नवीन कुमार शर्मा (स अ)
पूर्व मा0 विद्यालय, खेड़की (ऊन), शामली।






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