प्रोफेसर ने जब कक्षा में प्रवेश किया तो बड़ा शोर-शराबा हो रहा था | किसी बात को लेकर बहुत जोरदार बहस हो रही थी | प्रोफेसर को कक्षा में देखकर सभी शान्त हो गये | लेकिन प्रोफेसर जानना चाहते थे की आखिर हुआ क्या है ? और बहस का विषय क्या है ?
शिखा ने खड़े होकर बताना शुरू किया – “सर, ये मोटा.... सॉरी सर , ये हर्ष कह रहा है कि कोई बच्ची आँख पर पट्टी बन्द करके देख सकती है |”
सभी हँस पड़े और हर्ष खिसियाना हो गया | लेकिन ज़ल्दी ही अपने आप को सम्भाल कर बोला –“सर, मैंने अपनी इन्ही आँखों से उसे उसकी आँखों पर काली पट्टी बांधकर पुस्तक पढ़ते हुए देखा है |”
प्रोफेसर चुपचाप सुनते रहे |
कोई ज़वाब न पाकर हर्ष ने फिर से बोलना शुरू कर दिया –“यकीन मानिए सर, वो बच्ची आँखों पर काली पट्टी बाँधकर चीजों के रंग भी आसानी से बता देती है |”
प्रोफेसर तो चुप ही रहे लेकिन सिद्धि खडी होकर बोली –“सर, ऐसा कैसे हो सकता है ?”
विवेक तपाक से बोला –“उसे सिद्धि प्राप्त हो गयी होगी |”
सभी फिर से हँस पड़े और सिद्धि झुँझलाकर बैठ गयी |
प्रोफसर बोले – “ये वास्तव में बड़ी विचित्र बात है लेकिन हमें किसी भी बात को बिना पुष्टि किये न नकारना चाहिए न ही स्वीकार करना चाहिए | एक शिक्षक को एक सत्यार्थी भी होना चाहिए | फिर उन्होंने हर्ष से कहा –“आज हम लोग छुट्टी के बाद उस बच्ची से मिलने चलेंगें | लेकिन सब नही | मेरे साथ केवल हर्ष, गौतम, सिद्धि और आराधना ही चलेंगें | सभी के एक साथ जाने से वहाँ असुविधा होगी | फिर वो हर्ष से बोले- “ क्या ऐसा ठीक रहेगा ? बच्ची के माता-पिता को कोई ऐतराज़ तो नही होगा ?
“नहीं सर, कोई ऐतराज़ नही होगा | उसके माता-पिता तो खुश होकर सबको अपनी बच्ची के हुनर को सबके सामने दिखाते हैं |” हर्ष ने कहा |
“तो ठीक है, शाम का कार्यक्रम पक्का |
* * *
तय समय और स्थान पर सभी लोग मिले और फिर हर्ष सबको लेकर चल पड़ा | थोड़ी देर में वे एक मकान के सामने खड़े थे | मकान के बाहर एक नेम प्लेट लगी हुयी थी | उस पर लिखा था – पी०के० सिन्हा , | डोर-बेल बजायी गयी | मुस्कुराते हुए एक पैंतालिस-पचास की आयु के व्यक्ति ने दरवाज़ा खोला |
चूँकि हर्ष पहले वहाँ आ चुका था तो सभी का परिचय उसी ने कराया | श्रीमान सिन्हा सभी को घर के अन्दर लेकर गये | चाय-नाश्ते के बाद प्रोफ़ेसर ने अपने आने का उद्देश्य बताया |
सिन्हा साहब ने गर्व से बताना शुरू किया –“मैंने पिछले कुछ ही दिनों से अपनी बेटी को मिड-ब्रेन-एक्टिवेशन सेंटर पर भेजना शुरू किया है | बहुत अच्छे और अद्भुत परिणाम देखने को मिल रहे हैं | अब मेरी बेटी आँखों पर पट्टी बाँध कर दूर पैदल घूमकर आ सकती है | अक्षरों को छूकर पढ़ सकती है | वस्तुओं के रंगों की पहचान केवल सूंघकर बता सकती है | सेंटर वाले कह रहे थे कि एक दिन ऐसे बच्चे मनुष्य के अन्दर झांककर पता लगा लेते हैं कि मनुष्य को क्या बीमारी है ?”
सिद्धि कुछ कहना चाहती थी लेकिन प्रोफ़ेसर ने इशारे से उस चुप रहने के लिए कहा |
प्रोफसर बोले – “सिन्हा साहब ! अगर आपको कोई आपति न हो तो क्या हम बच्चे से मिल सकते हैं ?”
“हाँ-हाँ .. क्यों नही ? आप लोग आये भी तो इसीलिए हैं |” सिन्हा जी बोले | फिर उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज़ देकर बेटी को लेकर आने को कहा |
श्रीमती सिन्हा बच्ची को लेकर कमरे में आयीं | प्रोफेसर को अभिवादन करने के पश्चात् उन्होंने अपनी बेटी के विलक्षण गुणों का प्रदर्शन कराया | और सच में जैसा हर्ष और श्रीमान सिन्हा ने बताया था सब कुछ वैसा ही निकला | सभी चारों शिष्य आश्चर्य से प्रोफसर की ओर देख रहे थे |
कुछ देर चुप रहने के बाद प्रोफसर ने बच्ची को अपने पास बुलाया और बड़े प्रेम से उसे फिर से वे सभी कार्य आँखों पर पट्टी बाँधकर करने को कहा | करीब पाँच मिनटों तक प्रोफसर ने बच्ची से बात की और आँखों पर काली पट्टी बाँधकर कुछ भिन्न तरीकों से पुस्तक पढ़वाकर देखी | इस बार बच्ची कुछ जगहों पर सटीक ज़वाब नही दे पायी | इसके बाद कुछ देर तक उन्होंने बच्ची के माता-पिता से उस मिड-ब्रेन-एक्टिवेशन केन्द्र के बारे में बात की और फिर सभी शिष्यों सहित सिन्हा परिवार से विदा ली |
“आपने क्या पाया सर ?” आराधना बोली |
“अब आप लोग घर जाओ, कल कक्षा में चर्चा करेंगें |”
* * *
सभी शिष्यगण प्रोफेसर के बोलने का इस प्रकार इन्तजार कर रहे थे कि जैसे किसी वार्षिक परीक्षा का परिणाम घोषित होने वाला हो |
प्रोफेसर ने बोलना शुरू किया –“प्यारे शिष्यों, प्रकृति ने हमें पाँच संवेदी अंग प्रदान किये हैं | सभी पाँचों का कार्य अलग-अलग है | हम केवल जीभ से चखकर ही किसी वस्तू का रंग बता सकते हैं | सूंघकर हम उन पदार्थो में अन्तर कर सकते हैं उनके रंगों में नही | ऐसे ही छू-कर पढने के लिए हमे ब्रेन-लिपि या और अन्य किसी ऐसी ही लिपि की सहायता लेनी होगी | देखने के लिए हमे हर हालत में आँखों की ही सहायता लेनी पड़ेगी | अगर वो बच्ची बिना आँखों के सहायता के पढने में सक्षम है तो फिर वो सिर के पीछे पुस्तक क्यों नही पढ़ पाती ? या फिर जब मैंने कमरे की लाइट बन्द कर दी तो फिर वो क्या नही पढ़ पाई ? सिद्धि और आराधना ! तुमने देखा होगा कि जब उसे किसी वस्तू का रंग बताने के लिए कहा जाता है तो वह सूँघने के बहाने उस वस्तू को अपनी आँखों के पास लाती है |”
गौतम बोला –“तो सर क्या वो बहाने कर रही थी ?”
प्रोफेसर –“बिल्कुल, वो झूठ बोल रही थी | वास्तव में उसे पट्टी के नीचे से पढने लायक दीख जाता है | मैं तो इसी निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि मिड-ब्रेन-एक्टिवेशन केन्द्र वाले माता-पिता को भ्रमित कर रहे हैं और बच्चों को झूठ बोलने की आदत डाल रहे हैं | इसीलिए ये लोग अवयस्कों को ही प्रशिक्षण के लिए बुलाते हैं ताकि उनके मस्तिष्क पर आसानी से हावी हो सकें | यदि इनकी ट्रेनिंग से कोई व्यक्ति पेट के अन्दर देखकर बीमारी का पता लगाने में सक्षम हो जाया करता तो आधुनिक इलेक्ट्रोनिक तकनीक पर इतने शोध करने की क्या आवश्यता थी ? क्यों दिन-रात विशेषज्ञ चिकित्सक-गण अंधी आँखों में रोशनी लाने के लिए दिन रात नई-नई युक्तियों में परिश्रम करते ?”
“इसीलिए कहता हूँ कि एक अच्छे शिक्षक को सत्यार्थी भी होना चाहिए |”
सभी शिष्यों ने प्रोफेसर के कथन से सहमति व्यक्त की |
विवेक ने कहा –“लेकिन सर, मोटापा कम करने की विधि और दवाई उनकी वास्तव में कारगर हैं | उनसे हर्ष का मोटापा अवश्य कम हो जाएगा |”
“झूठे आदमी इस दवाई को भी झूठी कीमतों पर बेच रहे हैं | ऐसे लोगों से दूर ही ठीक है |” नेहा ने अपना मत दिया |
........................... कक्षा का समय समाप्त हो चुका था और प्रोफसर कक्षा से बाहर चले गये |
-जयकुमार