आयी कहाँ से तुझे जाना कहाँ,
भेष कौन सा तेरा घर हैं कहाँ,
रूप तेरा परियो जैसा समाये कहाँ।।
जिस कोख से तेरा जन्म हुआ,
हो जाती पल भर मे परायी यहाँ,
अनजान जगह अनजान लोगो मे,
ढूढँती रहती अपना अस्तित्व सदा।
जिस घर मे तेरा बचपन बीता,
वो घर भी हो जाता पराया यहाँ,
जिस घर मे अब तुझको जाना हैं,
वह भी कब होता हैं अपना यहाँ।।
अनजान लोगों को अपनाना यहाँ,
अपनें सब रिश्तों को भुलाना यहाँ,
ये वो घर है जहाँ तेरा थकना मना,
इच्छाओं पर अंकुश लगाना धर्म तेरा।।
खोयी रहती है बच्चों के पालन मे,
खुद को भुलाये रहती हैं मगन सदा,
है कौन इस सृष्टि मे समतुल्य तेरा,
जो छोड दे दूसरो के लिए सर्वस्व अपना।।
नारी तू इस सृष्टि की सुन्दर रचना,
अनमोल तेरा हर पल समझे कौन यहाँ,
हैं मूरत तू बलिदानों की कही भी रहे भला,
नारी तू कितनी महान जाने कौन यहाँ।।
-नीतू रानी