वास्तविक शिक्षक
प्रोफसर आज कक्षा में आते ही आराम की मुद्रा में शान्त भाव से बैठ गये | यही बात उनके शिष्यों को विचित्र लग रही थी क्योंकि ये उनके स्वभाव के विपरीत था | कुछ शिष्य मन ही मन प्रसन्न थे | उन्हें यह आभास हो रहा था की आज कहीं बाहर जाने से जान छूटी | लेकिन कुछ इसी उधेड़-बन में लगे थे कि आज अभी तक सबको बाहर चलने का आदेश प्रोफेसर ने क्यों नही दिया ? प्रोफ़ेसर शान्त भाव से सभी के चेहरों का अध्ययन करके मन की बात जानने का प्रयास कर रहे थे |
हर्ष को लगा कि कुछ करना चाहिए जिससे कि आज बाहर जाने से जान छूट सके | खड़े होकर उसने बोलना शुरू किया – “सर, कल मैं विवेकानन्द जी के विचार पढ़ा रहा था |”
विवेक ने चुटकी ली – “बहुत अच्छा किया, उनके विचारों से प्रभावित होकर अगर तुम अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दोगे तो तुम्हें अपनी स्थूल काया में सुधार करने में मदद मिलेगी |”
सभी हँस पड़े |
गौतम ने सभी को कठोर दृष्टि से देखा तो सभी एकदम शान्त होकर बैठ गये |
प्रोफसर ने हर्ष को अपनी बात पूरी करने का इशारा किया |
हर्ष ने फिर से बोलना शुरू किया –“सर, विवेकानन्द कहते हैं कि कोई किसी को नही पढ़ा सकता हम केवल वातावरण का सृजन कर सकते हैं जिसमे रहकर बालक का सर्वांगीण विकास होता है |”
प्रोफसर बोले- “ठीक है, अब यह बताओ कि तुम्हें सन्देह क्या है ?”
हर्ष –“सर, ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई किसी को पढ़ा है न सके ? अगर कोई किसी को पढ़ा ही नही सकता तो फिर इतने सारे विद्यालय क्यों खोले गये हैं और इनमे शिक्षकों की नियुक्ति क्यों की गयी |
प्रोफ़ेसर अपनी चिरपरिचित अन्दाज़ में रहस्मयी तरीके से मुस्क्रुराए | उन्होंने हर्ष से बाहर बरामदे में जाकर यह पता लगाने के लिए कहा कि सुरेश उस समय क्या कर रहा है | सुरेश शिक्षा संकाय के सामने के मैदान की घास और उसके चारो ओर लगी फुलवारी की देखभाल करने वाला कर्मचारी है |
हर्ष बिना कोई सवाल किये बाहर गया | उसके आने तक सभी शिष्यगण किमकर्त्व्यविमूढ़ बैठे रहे | उन्हें समझ नही आ रहा था कि आज क्या सबक मिलने वाला है |
हर्ष ने आकर बताया कि सुरेश अभी गमले में लगे पौधों की देखभाल में लगा हुआ है |
प्रोफ़ेसर ने आदेश दिया- “ठीक, तुम उसके पास जाओ और दोनों एक-एक गमला यहाँ लेकर आओ |
शिखा ने आकांक्षा के कान में धीरे से कहा- “आज शिक्षणशास्त्र की बजाय वनस्पति शास्त्र पढना पड़ेगा क्या ?
सभी हर्ष और सुरेश के आने तक चुप बैठे रहे | कुछ ही देर में दोनों एक-एक गमला हाथों में लिए कक्षा-कक्ष में आये | दोनों गमले मेज पर रख दिए गये | सुरेश जाने लगा तो प्रोफ़ेसर ने उसे रोक लिया | सभी को उस बड़ी सी मेज के चारों ओर खड़े होने का आदेश दिया गया |
प्रोफेसर ने बोलना शुरू किया – “मेज पर दो गमले रखे हैं | एक में गेंदें का पौधा है दूसरे में सदाबहार का पौधा है | सुरेश ! यह सदाबहार का पौधा तो गेंदें के पौधे से लम्बा है | तुम गेंदें के पौधे को भी खींचकर सदाबहार जितना ही लम्बा कर दो |”
सभी चकराए | सुरेश भी बेचारा कुछ समझ नही पाया | चुपचाप ही खड़ा रहा |
प्रोफेसर ने फिर अपनी बात दोहरायी –“सुरेश ! गेंदें के पौधे को भी खींचकर सदाबहार जितना ही लम्बा कर दो |”
सुरेश बेचारा डरा-सहमा खड़ा रहा | कुछ भी नही बोल पाया |
राघव बोला –“सर, यह कैसे सम्भव है कि पौधे को खींचकर लम्बा कर दिया जाये ?”
प्रोफसर ने प्रश्न भरी दृष्टि सुरेश की ओर डाली | सुरेश की फिर से बोलने की हिम्मत नही हुई लेकिन उसकी मुखमुद्रा से लग रहा था कि वह राघव की बात से सहमत है |
प्रोफेसर हँसकर बोले- “चलो सुरेश तुम एक काम कर दो, जैसे गेंदें के फूलों में बहुत सारी पंखुड़ियाँ हैं, ऐसी ही तुम सदाबहार के पौधों में भी उगा दो |
सुरेश कुछ पल तो चुप रहा फिर हिम्मत जुटाकर बोला –“सर जी, बहुत सारी पंखुड़ियाँ गंदें के फूल में ही हो सकती हैं , सदाबहार के फूल में तो वही गिनी-चुनी पाँच-छ: पंखुड़ियाँ ही आएँगी |?” मेरे पास ऐसा कोई उपाय नही कि मैं सदाबहार के फूलों में गंदें जितनी पंखुड़ियाँ लगा सकूँ |”
प्रोफेसर ने पूछा –“और क्या गेंदें के पौधे की भी लम्बाई नही बढ़ा सकते ?”
सुरेश साहस जुटाकर बोला –“बढ़ा तो सकता हूँ सर जी, लेकिन पौधे को खींचकर नही |”
“तो कैसे ?” इस बार प्रोफसर ने थोडा जोर से पूछा |
सब गौर से सुरेश का उत्तर सुनने को तैयार थे |
सुरेश ने बोलना शुरू किया –“किसी भी पौधे को खींचकर लम्बा नही किया जा सकता | हम केवल उसके लिए अनुकूल वातावरण बनाते है जिसमे रहकर पौधे की लम्बाई स्वयं ही बढ़ जाती है |”
“कैसा वातावरण ?” एस बार सवाल आराधना ने पूछा |
“हम पौधे को अच्छी मिट्टी में देते हैं | उस मिट्टी में उचित मात्रा में खाद और पानी मिलाते है | साथ ही हम पौधे को खुली हवा और सूरज का प्रकाश में रखते हैं | इतना कुछ करने से पौधों की लम्बाई में अपने आप अच्छी बढ़त होती है |” सुरेश ने इस बार पूरे आत्म-विश्वास से कहा |
प्रोफेसर फिर से मुस्कुराए और सुरेश को जाने का इशारा किया |
अब उन्होंने अपने शिष्यों से पूछा –“आशा है आप लोगों को हर्ष के सवाल का जवाब मिल गया होगा?”
उन्होंने फिर हर्ष से पुछा –“तुम्हारा सन्देह भी दूर हुआ?”
हर्ष खड़ा हो गया |
सभी हँसने लगे |
लेकिन हर्ष ने बिना किसी पर ध्यान दिए बोलना शुरू किया –“विवेकानन्द जी ने हमें यह समझाया है कि हम किसी शिष्य को स्वयं से पढ़ाकर नही सिखा सकते | अगर हम चाहते हैं की बच्चा कुछ सीखे तो हमें सीखने का वातावरण सृजित करना होगा | जब सीखने का उचित वातावरण मिलेगा तो बच्चे के अन्तर्निहित गुणों का विकास ऐसे ही होने लगेगा जैसे की अनुकूल वातावरण मिलने पर पौधा विकसित होने लगता है |”
प्रोफेसर ने अपने शिष्य के लिए ताली बजायी और बोले- “हर्ष ने कहा अन्तर्निहित गुणों का विकास |”
शिक्षा ने आपत्ति की –“सर हर्ष ने ??? या विवेकानन्द जी ने ?”
प्रोफेसर ने अपनी बात जारी रखी –“अनुकूल वातावारण मिलने पर भी हम किसी बच्चे के अन्तर्निहित गुणों का ही विकास कर सकते हैं | यदि किसी बच्चे के अन्दर प्रकृति ने अच्छे चित्रकार के गुण निहित किये है तो हम उसे अपने प्रयास से बहुत अच्छा वैज्ञानिक नही बना सकते | इसी लिए बच्चे की रुचियों-अभिरुचियों का पता लगाया जाता है ताकि बच्चे को हम सही दिशा में ले जा सकें |”
सभी शिष्यों ने खड़े होकर अपने गुरु को अभिवादन किया | प्रोफसर प्रसन्न हुए क्योंकि वो जानते थे कि उनके शिष्य जब भी किसी सबक को भली-भान्ति समझ जाते हैं तो वो इसी तरह अभिवादन करते हैं |
-जयकुमार