"अरे कोई बात नहीं बाबू जी"
जून महीने की तपती दोपहरी के चलते सड़कों पर जैसे सन्नाटा पसरा था, चंद लोग ही आते जाते दिख रहे थे।लेकिन मनोहर सरकारी बस अड्डे के गेट के एक किनारे पर खड़ा सामने की सड़क पर कभी इधर कभी उधर अपलक देखे जा रहा था।ऐसा लग रहा था कि किसी विशेष आगंतुक की प्रतीक्षा में हो।काफी देर हो गई थी इस तरह खड़े हुए, तभी एक रिक्शे वाले को देखकर मनोहर जोर से चिल्लाया,, ये रिक्शेवाले ये रिक्शेवाले,,, रिक्शेवाले ने आवाज सुनकर मनोहर की ओर देखा तो मनोहर ने हाथ से इशारा कर कहा, हाँ इधर आओ,, हाँ तुम से ही कह रहे हैं।रिक्शेवाले ने मनोहर के पास आकर रिक्शा रोक कर कहा, जी बाबू जी कहाँ चलना है इतना कहकर गले में पड़े गमछे को हाँथों में लेकर सिर से लेकर चेहरे पर चुचुहाते पसीने को पोछने लगा।
मनोहर की आँखों के सामने कल भीड़भाड़ में बाजार में उसके द्वारा इसी रिक्शेवाले को थप्पड़ मारने का दृश्य उतर आया।कल भी इस रिक्शेवाले ने इसी तरह गमछे से अपना चेहरा पसीने से तर बतर पोछा था जब मैंने इसके जोर से थप्पड़ मारा था, रिक्शेवाले के रिक्शे का अगला पहिया जरा सा मेरी पैंट से छू गया था।थप्पड़ खाने के बाद अपना गाल सहलाते हुए सिर्फ इतना बोला था ये, बाबू जी गलती हो गई।मनोहर को याद आ रहा था कि दो हट्टे कट्टे लोग उस समय इसके रिक्शे पर सवार थे लेकिन कोई कुछ नहीं बोला था बल्कि उल्टा इस रिक्शेवाले को डांट कर कहा था कि साले देखकर चलाते भी तो नहीं।मनोहर को इस तरह चुप खड़ा देखकर रिक्शा वाला बोला,, बाबू जी कहाँ चलना है बताओ।मनोहर ने आगे बढ़कर रिक्शेवाले के कंधे पर हाँथ रखकर कहा कहीं नहीं जाना है बस,, तुम इधर रिक्शे से उतर कर आओ।इतना सुनते ही रिक्शेवाले के चेहरे पर अजीब सा भय छा गया कि क्या कहीं जाने अनजाने में उससे इन बाबू जी के साथ कोई गलती हो गई,।,,नहीं ,,नहीं घबराओ मत मेरी बात सुनो ,,,मनोहर ने उसको विचलित होते देखकर उसके भय को दूर करते हुए कहा।,,जी बाबू जी,, रिक्शे से नीचे उतर कर रिक्शेवाले ने कहा।
मनोहर बोला,, शायद तुम मुझे नहीं पहचान पा रहे हो। देखो भाई कल हमनें तुम्हारे गाल पर थप्पड़ मार दिया था, लेकिन तुम्हारी कोई गलती नहीं थी। क्योंकि इतनी भीड़ थी और मैं बीच से निकल पड़ा था और तुमने गलती न होने पर भी हम से माफ़ी मांगी थी।मैं कल से परेशान हूँ,मुझे कल की इस घटना ने रात भर सोने नहीं दिया। आज मैं ड्यूटी पर भी नहीं जा सका ।सुबह से इधर उधर तुमको ही तलाश रहा था, लेकिन जब तुम नहीं मिले तो मैंने सोचा दोपहर के समय रिक्शेवाले
रिक्शेवाला आंसुओं को न रोक सका ।,, बोला बाबू जी हमें विश्वास नहीं हो रहा है कि यह सब क्या हो रहा आखिर,, रिक्शेवाले और मनोहर दोनों की आंखों में आंसू थे।एक की आँखों में श्रद्धा और अप्रत्याशित स्नेह के तो एक की आँखों में पछतावे और प्रायश्चित के ।
-रामबाबू शुक्ला
कवि ओज एवं व्यंग्य लेखक
स्वास्थ्य सेवा में संलग्न
पुवायां (शाहजहांपुर)