जड़

सृजन
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सौंदर्य की प्रतिमूर्ति स्वंय को सर्वगुण सम्पन्न समझने वाली लेखा जी का मानना था कि दुनिया की किसी भी उपलब्धि और सफलता पर सिर्फ उनका ही अधिकार हो सकता है। स्वयं को स्थापित करने की होड़ में वे किसी भी हद को पार कर लेती थी साम दाम दंड भेद की इस कला के उनके पति भी पारखी थे।उधर अपने कार्य से कार्य रखने वाली शांत चित्त किन्तु गलत पर त्वरित प्रतिक्रिया देने की आदि सरिता रिश्ते में तो लेखा जी की जेठानी थी किन्तु अपने पति के क्रोधी स्वभाव वश विवश रहती।

सरिता की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी अतः उन्होंने पति के सहायतार्थ घर से ही ब्यूटीपार्लर चलाने का निर्णय लिया और अपनी मेहनत से सुचारू भी कर दिया।अब लेखा जी को यह भी नागवार गुजरा की मैं गृहणी! वह व्यवसायी! यह कैसे सम्भव?अतः उन्होंने जड़ खोदनी शुरू की और महिला ग्राह्नको को भड़काने के काम शुरू कर दिया। एक दिन सरिता ने प्रत्यक्ष देख लिया ग्राह्नक जो दुल्हन सजाने के लिये बुकिंग करने आयी थी उसे भड़काते की सरिता से बेहतर श्रृंगार मैं करती हूं आप मुझे बुक करें।अवाक सरिता ने काफी प्रयास किया किन्तु ग्राह्नक भड़क चुकी थी और अविश्वास करते हुए उन्होंने इनकार कर दिया। इस तरह के अनेक उपक्रम करती लेखा जी अपनी मंशा में कामयाब होती जा रही थी।डब्बों में से क्रीम निकाल लेना,चीजे गायब कर देना, उपकरण खराब कर देना यह सब मामूली कर्म थे। जिसकी सरिता प्रत्यक्ष गवाह रहती किन्तु पारिवारिक विवशतावश कुछ कह न पाती।

अंततः साजिशों के तहत पारिवारिक क्लेश उपद्रव के साथ ब्यूटी पार्लर बन्द हो गया पति के असहयोगी भावना की आदि सरिता ने एक बार पुनः नियति मान धैर्य धर लिया । किन्तु कहते हैं न कि मानव स्वभाव अंत तक प्रयास नहीं छोड़ता। जब तक जीवन है जीवन यापन के संघर्ष को जीता ही है। सरिता भी जीवन की नैया पार करती रही, और साजिशों के दौर सहती रही। इस दौरान सरिता ने अपने जीवन के अनुभवों को लेखनी बद्ध करना शुरू कर दिया और ईश्वर की अनुकम्पा से वह प्रसिद्धि की तरफ मुड़ने लगी।

पुनः लेखा जी के पेट मे दर्द शुरू हुआ और उन्होंने अपनी साजिशों को जबरदस्त रंग देना शुरू कर दिया तथा स्वयं के ही कभी कहे "जुमले हमीं बनना चाहते हमीं से चिढ़ कर" को स्वयं पर सार्थक करने लगी और कूद पड़ी इस क्षेत्र में भी।ऐड़ी चोटी का जोर लगाती वे अब सरिता के सभी सम्पर्क खंगालने और आजमाने में जुट गयीं।

सरिता अब तक परिपक्वता की सभी सीमाएं पार कर प्रौढ़ हो चुकी थीं।अनुभवों ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया हैं।सुंदरता चार दिन की मेहमान और धोखे तथा मक्कारी की भी एक उम्र होती है।

उन्होंने लेखा जी के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है, उनकी जड़ें उनके बच्चें अब मजबूत हो चुके हैं।।

सारिका चौरसिया

मिर्ज़ापुर उत्तर प्रदेश

 

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