हमारा देश भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया, लेकिन अस्तित्व में आने से पहले ही राजनैतिक महत्वाकांक्षा के कारण विभाजित होकर दो भागों में विभाजित हो गया। यह विभाजन सदी की सबसे बड़ी त्रासदी सिद्ध हुआ। 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान की सरकार और सेना ने कबायलियों को ट्रेनिंग और हथियार देकर कश्मीर पर कब्ज़ा करने के लिए भेज दिया। 23 अक्टूबर को 1947 को दिल्ली के पालम हवाई अड्डे से सैनिकों को श्रीनगर पहुंचाया गया। 02 नवम्बर को सैन्य सूत्रों से सूचना मिली कि कबायली श्रीनगर एयफील्ड से कुछ ही किलोमीटर दूर बड़गाम तक पहुंच गये हैं। सूचना मिलते ही कुमांऊ रेजिमेंट की एक कम्पनी को भेजा गया। यह कम्पनी थी, 4 कुमाऊं रेजिमेंट की डेल्टा कम्पनी।
19 वीं हैदराबाद रेजिमेंट जो कि अब 4 कुमाऊं रेजिमेंट के नाम से जानी जाती है, कश्मीर को कबायलियों से बचाने में इस रेजिमेंट का बहुत बड़ा योगदान रहा है। भारत पाक के इस प्रथम युद्ध में कुमाऊं रेजिमेंट को श्रीनगर एयरफील्ड की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था। रणनीतिक दृष्टि से श्रीनगर एयरफील्ड पर कबायलियों के हमले का खतरा ज्यादा था। यदि इस एयरफील्ड पर कबायलियों का नियंत्रण हो जाता तो भारतीय सेना के लिए कश्मीर पहुंचने का कोई रास्ता न बचता।
कुमाऊं रेजिमेंट की डेल्टा कंपनी में कुल 50 जवान थे। इस कंपनी की कमान मेजर सोमनाथ शर्मा के हाथों में थी। 03 नवम्बर को आगे बढ़ते हुए मेजर सोमनाथ शर्मा की कंपनी का सामना कबायलियों के बड़े दल से हुआ। इस दल में कबायली लड़ाकों की संख्या लगभग 700 थी। यह दल संख्या में कुमाऊं रेजिमेंट की डेल्टा कंपनी से 14 गुना ज्यादा बड़ा था। कुमाऊं रेजिमेंट के जवानों मोर्चा संभाल लिया। भारतीय सेना और कबायलियों के बीच घनघोर युध्द हुआ। साथ में कम गोला बारूद साथ होने के बावजूद भी कुमाऊं रेजिमेंट के जवानों ने अपने शौर्य और पराक्रम के बल पर कबायलियों के छक्के छुड़ा दिए। मेजर शर्मा अपनी कंपनी के जवानों का लगातार उत्साहवर्धन करते रहे। एक हाथ में प्लास्टर लगा होने के बावजूद वे अपने सैनिकों के लिए मैगजीन भरकर पहुंचाते रहे। इसी बीच उनके पास मोर्टार का एक गोला आकर गिरा और वह वीरगति को प्राप्त हो गये।
मेजर सोमनाथ शर्मा ने अपने ब्रिगेड हेडक्वार्टर को अपनी वीरगति से पहले जो आखिरी संदेश भेजा था वह संदेश
बड़गाम के इस युध्द में मेजर सोमनाथ शर्मा की कम्पनी के एक जूनियर कमीशन्ड आफीसर तथा 20 से ज्यादा जवान वीरगति को प्राप्त हो गये लेकिन अपने साहस और वीरता के बल पर उन्होंने कबायलियों को 6 घंटे तक आगे नहीं बढ़ने दिया। इस अंतराल में पीछे से इसी रेजिमेंट की अल्फा कंपनी आ गयी और उसने मोर्चा संभाल लिया।
- हरी राम यादव
सूबेदार मेजर (से०नि०)
लखनऊ, उत्तर प्रदेश