मानव धर्म

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 मनुज मनुज का शत्रु बन बैठा आज,

ये जग कैसा अजब रंगशाला है!

कौन कहता जीवन अमृत की धारा,

ये जीवन तो विष का एक प्याला है!

        निज स्वार्थ के हाथों वशीभूत है सब,

        चारों ओर भ्र्ष्टाचार का बोलबाला है!

        पद- ओहदे और धन- दौलत के आगे,

        हर इंसान का ईमान घुटने टेक रहा!

कौड़ियों के भाव बिक रहा इंसान,

अधर्म चमक रहा, धर्म का मुँह काला है!

ये कैसा घनघोर कलयुग आया ईश्वर,

तम के बादल में छुपा क्यों उजाला है!

        संवेदनाओं को पुनः जीवंत करने को मनुज,

        क्षमा, दया और प्रेम का संचार करो!

        क्षणिक सुख के भवसागर से उबरकर,

        सत्मार्ग का अनुरागी बन जग का उद्धार करो!

सृष्टि में मानव जीवन बड़ा ही दुर्लभ,

लहू में अपने मानवता का संचार करो!

औरों के लिए बनो आदर्श पथ प्रदर्शक,

संपूर्ण विश्व में मानव धर्म का विस्तार करो!

 

अनिता सिंह (शिक्षिका)

देवघर, झारखण्ड।

 

 

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