कभी ज़फ़र है
तो कभी शिकस्त भी है।
कभी नसीम है
तो कभी आंधी-तूफान भी है।
कभी बहार है
तो कभी ख़िजां भी है।
कभी आब-ए-हयात है
तो कभी ज़हर भी है।
कभी मरहम है
तो कभी ज़ख़्म भी है।
कभी नफ़रत की आतिश है
तो कभी रसम-ए-उलफ़त भी है।
कभी गुलिस्तां है
तो कभी सूखा रेगिस्तान भी है।
कभी रिमझिम बौछार है
तो कभी मूस्ला-धार बारिश भी है।
समझ गएं तो फ़िरदौस है, नहीं तो जहन्नुम है।
समीर उपाध्याय 'ललित'
चोटीला, जिला: सुरेंद्रनगर
गुजरात