आँखें बहुत दिखाते हो,
जाड़े में तो तुम भी,
भीगी बिल्ली बन जाते हो!
बरसात में तुम सूरज दादा,
लुका - छिपी करते रहते हो,
छुप जाते तो भी अच्छा लगता,
निकल कर आग उगलते हो!
तुम्हारा लुका - छिपी का खेल,
जाड़े में औषधि हो तुम,
अब नहीं कोई सेवन करता,
विटामिन डी देते हो तुम!
गर्मी में लू लग जाती है,
बरखा में सर्फ सवारी होती है,
बदन काला कर देते हो,
तुम जग को जीवन देते हो!
किरण तुम्हारी सूरज दादा,
औषधियों का भोजन है,
अण्डज, पिण्डज, ऋत्विज का जीवन है,
स्वस्थ रहते हैं जो तुम्हें नमन करते हैं!
सतीश "बब्बा"