हमें प्रभु की भक्ति करनी है और यह भक्ति तीव्र कब हो जाती है जब हमें हर व्यक्ति भगवान के रूप में दिखाई दे । सृष्टि नहीं थी तब भी भगवान थे । आज भी भगवान है और सृष्टि विलिन हो जायें तो भी भगवान रहेंगे । जहां मेरा , मेरी , मेरे शब्द आते हैं वहीं माया है जबकि सारी सम्पत्ति भगवान की है ।
संसार क्या है एक सपना है । सत्य क्या है । हरि का भजन ही सत्य है । आत्मा का स्वरूप परमात्मा का ही स्वरूप है । जिस प्रकार हम दिन में दो बार भोजन करते है ठीक उसी प्रकार आत्मा को भी भोजन कराना चाहिए । आत्मा का भोजन भजन है । भगवान के नाम का स्मरण करना ही भगवान का भोजन है । भक्ति उतनी आसान नहीं है जितनी हम समझते है । जब कोई तिलक लगाकर दिन - रात राम , राम , राधे , राधे बोलता है ऊसका लोग मजाक उडाते है । लेकिन प्रभु के सच्चे भक्त को जहर जैसे कटु शब्दों को सुनने के लिए हर वक्त तैयार रहना चाहिए एवं सच्चे भक्त कटु वचन सुनकर भी कभी भी क्रोध नहीं करतें है । वे तो बस प्रभु की भक्ति में ही मस्त रह्ते है ।
इस संसार में दुःख के अलावा कुछ भी मिलने वाला नहीं है । इस संसार का दूसरा नाम दुःख सागर है । उन तमाम चीजों का जीवन में से परित्याग कर देना चाहिए जो प्रभु की भक्ति में बाधक हो । संसार में आने का मूल कारण ही आसक्ति है । आगर यहीं आसक्ति ( मोह ) हम प्रभु में लगा दें तो हमारा कल्याण निश्चित है । मोक्ष की प्राप्ति के लिए अच्छे संत की संगत करनी चाहिए । यहीं मोक्ष प्राप्ति की पहली सीढी हैं ।
सुनील कुमार माथुर
33 वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी
खेमे का कुआ पालरोड
जोधपुर, राजस्थान