धरती पुत्रों तुम्हें नमन

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जो धरती की माटी लेकर

माथे तिलक लगाता है ,

जो खेतों से राजपथो  तक

श्रम के गीत सुनाता है

जिनके भीतर जलती रहती

शीतलता से कोई अगन

धरती पुत्रों तुम्हें नमन

धरती पुत्रों तुम्हें नमन ।।

 

जिनका स्वेद ,गिरे धरा पर

वो चंदन बन जाता है ,

चट्टानों को काट काट कर

गीत विजय के गाता  है

संघर्षों में तप कर  जो

अंदर जिंदा रखे लगन

धरतीपुत्रों तुम्हें नमन

 धरती पुत्रों तुम्हें नमन ।।

 

जो माटी को सींच रहे 

अपने खून पसीने से

 खूब सँवरती है ये धरती

 श्रम के इसी नगीने से

जिनके भीतर ही पलती है

सूरज जैसे कोई अगन

 धरती पुत्रों तुम्हें नमन

धरती पुत्रों तुम्हें नमन ।।

 

जिनका जीवन अर्पित  है

राष्ट्र के ही निर्माणो में

आंखों में विश्वास पले

मेहनत जिनके प्राणों में

ये माटी के सच्चे सैनिक

जो रखते खुशहाल वतन

 माटी पुत्रों तुम्हें नमन

माटी पुत्रों तुम्हें नमन।।

 

 जो रहते बुनियादो में

 चकाचौंध से कोसों दूर

अपना केवल फर्ज निभाते

खेतों में जीने वाले शूर

देश के खातिर ढला हुआ

जिनका है,फौलाद बदन

 माटी पुत्रों तुम्हें नमन

 माटी पुत्रों तुम्हें नमन ।।

 

सतीश उपाध्याय

 कृष्णा उपाध्याय सेनानी कुटी

 मनेंद्रगढ़ कोरिया, छत्तीसगढ़

 

 

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