बच्चों... चलो..तुम्हे बतलाए!
एक बात जो सबने मानी!
सबने बचपन याद किया बस!
सबने की..वो सब.. नादानी!
सबने खास यही लिखा था!
ज़ब वे मेरे सम्मुख आए!
अपने बचपन की यादों को!
जीवन का मधुमय बतलाये!
मगर ढीठ बन..तुम्हे बताने!
निष्ठुर हो.. तुमको समझाते!
मनमानी जो.. ख़ुद करते थे!
उससे... तुमको दूर हटाते!
मुझे नहीं समझ आया, अब तक ये!
वे.. अब.. झूठे या...तब झूठे!
मनमानी से...सुख पाते थे!
फिर क्यों...अब.. मन से यूं रूखे!
बच्चों! तुम भी... जी लो ख़ुद की!
यही समय है... बिन चिंता जी!
जो मन से मनमानी ना कर ली!
कल को क्या...कहनी है कहनी!
जो भी करना, मन से करना!
इतना करना..बच कर रहना!
हाँ, बस भेद यही रखना रे!
कल.. कहने लायक.. ही करना!
तेरे जैसा कोई नहीं है!
इसका भान प्रभु को प्यारे!
वरना क्या इतने "वे" खाली!
प्रतिरूपों में समय गवाँते!
रे! अभिमान मुझे इतना है!
मैने अब तक तुमको जीया!
जो मन करता, उतना कर के!
ख़ुद को बचपन तक ही रखता!
डॉ0 सत्य प्रकाश
वैज्ञानिक, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय