"सुनंदा जल्दी से नाश्ता लगा दो। तुम्हें मालूम है ना आज रास्ता रोको आंदोलन है। सारी जवाबदारी मुझे दी गई है। आज मेरी ही अगुवाई में चक्काजाम होगा"
अब पत्नी सुनंदा से यह कहकर दीपक नाश्ते की टेबल पर बैठ गया । दोनों बच्चे भी नाश्ते की टेबल पर आकर बैठ गए । नाश्ता लगाकर सुनंदा भी नाश्ते की टेबल पर बैठकर नाश्ता करने लगी । तभी शहर के अस्पताल से दीपक के पिता का फोन आ जाता है। वे रूआंसे होकर कहते हैं " बेटा बहू बच्चों को लेकर जल्दी अस्पताल आ जाओ । डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है । तुम्हारी माँ तुम सभी को देखना चाहती है"।
दीपक-सुनंदा फफकने लगते हैं। नाश्ता टेबल पर ही छोड़कर चारों कार से पचास किलोमीटर दूर शहर के अस्पताल के लिए निकल जाते हैं । मुख्य सड़कों पर भीड़भाड़ और गहमागहमी है । आंदोलनकारी झंडे बैनर लेकर रास्ता रोक रहे हैं । परेशान दीपक खुद को आंदोलन का हिस्सा बताकर आंदोलनकारियों के सामने माँ के सीरियस होने का हवाला देकर गिड़गिड़ाता रहा। नारेबाजी के कारण किसी को कुछ भी सुनाई नहीं दिया । सड़कों पर मिलो लंबा जाम लग गया । दीपक की कार बीच में बेतरतीब फसी हुई थी । सुनंदा और बच्चों का भूख प्यास गर्मी से बुरा हाल हो गया ।
शाम चार बजे तक चक्का जाम में सभी गाड़ियां फंसी रही । आंदोलन समाप्ति के बाद सड़कों पर गाड़ियां धीरे-धीरे रेंगकर आगे से खसकने लगी । कार अस्पताल की ओर भगाते हुए दीपक ने सुनंदा से कहा "आज का दृश्य देखकर मुझे रास्ता रोको आंदोलन से नफरत हो गई है । मुझे आंदोलनकारी कहलाने में गर्व होता रहा । आज के बाद मैं कभी किसी रास्ता रोको आंदोलन का हिस्सा नहीं बनूंगा दूसरों को भी इस तरह की गुंडागर्दी से दूर रहने की सलाह दूंगा"।
दीपक की कार अस्पताल परिसर में प्रवेश कर गई । तभी पिताजी के फोन की घंटी बज उठी । वे रोकर बोले "बेटा तुम्हारी माँ ने दम तोड़ दिया है । उसकी आंखें तुम्हारी राह तकते तकते फटी की फटी रह गई। उसके आखिरी शब्द थे 'जाने के पहले एक बार मेरे बच्चों को मुझ से मिलवा देते" !
-रमेश चन्द्र शर्मा
इंदौर, मध्यप्रदेश