त्रैलोक्य का नाथ सभी कहीं है,
क्या ठीक है जो यह मार्गचारी,
बने तुम्हारा विषयाधिकारी।।
उक्त पंकितयाँ हिंदी साहित्य के कवि मैथिलीशरण गुप्त के प्रसिद्ध नाटक चंद्रहास से ली गयीं हैं। सबसे पहले तो चंद्रहास का मतलब जानना जरूरी है। चंद्रहास एक अनेकार्थी शब्द है जिसके काफी अर्थ हैं। जहाँ पर चंद्रहास चमकीली तलवार या खड्ग को कहते हैं वहीँ पर चंद्रहास का मतलब अत्यधिक सुन्दर अथवा आकर्षक भी होता है। वैसे रावण की तलवार का नाम भी चंद्रहास था जिससे रावण ने भगवन शिव से प्राप्र्त किया था, वहीँ पर चाँद की तरह मुस्कान वाले या यूँ कहें की सुन्दर मुस्कान वाले को भी चंद्रहास कहते हैं। यहाँ पर चंद्रहास एक बालक का नाम है जो नाटक का नायक भी है।
गालव (कुन्तलपुर राज्य के राजपुरोहित) चंद्रहास को राजमहल में राजा और घृष्टबुद्धि (कुन्तलपुर राज्य के मंत्री) के सामने प्रस्तुत करते हैं। गालव की नज़रों में बालक न सिर्फ सुन्दर बल्कि शुभ लक्षण वाला भी है। गालव के चंद्रहास के बारे में पूछने पर घृष्टबुद्धि उसको अनाथ कहकर संभोदित करते हैं। इस पर गालव अपनी प्रतिक्रिया के रूप में उक्त छंद बोलते हैं। गालव के रूप में मैथिलीशरण गुप्त कहते हैं कि कोई भी मनुष्य अनाथ नहीं है क्यूंकि तीन लोकों (स्वर्ग, मर्त्य और पाताल) के नाथ अर्थात भगवान सबके लिए हैं और सब प्राणियों की देखभाल कर रहे हैं।
आगे गालव सभा में उपस्थित सभी ब्राह्मणों से पूछते हैं कि क्या घृष्टबुद्धि का इस तरह का व्यवहार एक बालक के प्रति उचित है !!! मैथिलीशरण गुप्त एक मंत्री को विषयाधिकारी के समान देखते हैं। जिस तरह एक अध्यापक अपने विषय पर पकड़ रखता है अर्थात विषय का पूरा ज्ञान रखता है उसी तरह एक मंत्री को चाहिए की अपने राज्य की गतिविधियों पर नज़ार रखें। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि मंत्री सबको समान नज़र से देखे और लोगों में जातियों और रंग भेद के आधार पर भेदभाव न करे। यही चीज़ गालव द्वारा ब्राह्मणों से पूछे जाने पर सारे ब्राह्मण अपनी सहमति जताते हैं।
-प्रफुल्ल सक्सैना
जयपुर, राजस्थान