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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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बुधवार, 15 दिसंबर 2021

लेख्य त्रास

   

          डायरी मैंने उन्हीं दिनों लिखना शुरू कर दिया था जब मैं दसवीं कक्षा का छात्र था। उन दिनों नैतिक, वैचारिक मनोभाव की बातें कहाँ थीं?; अभ्यास हेतु दैनिक कार्यक्रम हीं लिख लिया करता था। धीरे-धीरे वर्षों बाद जब लेखन की परिपक्वता के साथ कुछ जीवन-परिवर्तन शुरू हुआ तो उसमें शिक्षण, दर्शन और राजनैतिक बातों का भी अंकन शुरू हो गया। यहाँ तक कि एक प्रेम-प्रसंग की चर्चा मैंने उसमें बखूबी की थी। प्रेम-प्रसंग किसी और का नहीं, …………..शिवानी की छोटी बहन अर्चना का हीं था। अर्चना के साथ-साथ कहीं कहीं शिवानी की भी चर्चा वैसे मेरी डायरी में थी। ………..उसकी कुछ विशेष आदतों की चर्चा। उस चर्चा में ही एक दिन अर्चना ने बताया था, “दीदी अमृतलाल नगर की ‘मानस का हंस’ जैसी मोटी-मोटी पुस्तकें एक ही सांस में पढ़ जाती है”।

        तत्पश्चात उच्च शिक्षा प्राप्त कर एक सक्षम व्यक्तित्व लिए जीवन की दहलीज पर पाँव रखना शुरू किया। …….. तब घर में मेरी शादी की जोरदार चर्चा हुई थी, ……. मेरी अनचाही स्वीकृति, रिश्ते में बदल जायेगी यह मुझे विश्वास न था। ….. शिवानी घर में पत्नी बनकर आ चुकी थी। … मैं अंदर-ही-अंदर घुल-पच रहा था। ……… सोच-समझ कर समझौता की कोशिश कर रहा था।

        रैक पर पड़े पुराने किताबों के साथ दबे उन डायरियों पर ध्यान चल ही जाता था, और मैं अनायास उनके अतीत में जाकर बेचैनी महसूस करता। अर्चना द्वारा बतायी गई बातें बार-बार मन को भारी कर रहीं थीं, मुझे लग रहा था, “अगर शिवानी को यह …………………”

    तब उन्हें छिपाने की कोशिश भर करता था। आज इस कोशिश में सफलता पाया हूँ, इन अतीत के पांडुलिपियों को दीये की लौ में देकर।

सामने पड़े काले-काले टुकड़ों को देख, भविष्य के प्रति निश्चिंत हो गया हूँ।

 

 ललन प्रसाद सिंह

403,श्याम कुटीर एपा.,

नाला पर,सिद्धार्थ नगर,

जगदेव पथ,पटना, बिहार

 

 

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