झूमा बादल नाची मोर,
छायी काली घटा घनघोर ।
मेंढ़क और गिलहरी नाचें,
गौरैया गीत सुनाए ।
चहुंदिश हरियाली चमक रही,
कोयल गाना गाए।।
कौआ झूम कर नाच रहा,
मछली जल में करत किलोर।।
झूमा बादल नाची मोर, छायी काली घटा घनघोर ।।1।।
सूख रही थी नदी सारी ,
वृक्षारोपण भी रूका हुआ ।
तालाबों में नहीं था पानी,
सूखा चहुंदिश पड़ा हुआ ।।
पेड़ से झांके सोन चिरैया
प्यासे घूम रहे थे ढोर।।
झूमा बादल नाची मोर, छायी काली घटा घनघोर ।।2।।
सुन ली उसने मेरी गुहार।
झूम झूम कर गरज रहा ,
रिमझिम रिमझिम बरस रहा ।
अम्बर बरसे धरती भीजें,
खेतों की हो गई भोर।।
झूमा बादल नाची मोर, छायी काली घटा घनघोर ।।3।।
कहें "मंजरी "सुन लो भाई,
जा बारिश ने खूब बनाई।
नन्हे बच्चे झूम रहे,
उछल उछल कर कूंद रहे।
जम कर बरसे काले बदरा
मिल ना पाए कोई छोर।
झूमा बादल नाची मोर, छायी काली घटा घनघोर ।।4।।
"मुल्क मंजरी"
भगवत पटेल
2/C-9, वृन्दावन कालोनी लखनऊ