बारिश

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 आज धरा की गुहार है रंग लाई,

नीले नभ में घनघोर बदरी छाई,

प्रकृति की छटा मनमोहक उभर आई,

आज बारिश की पहली फुहार आई...

 

वृक्ष झुक झांकने लगे गरदन उचकाये,

मयूर पंख फैलाए नृत्य करत इतराए,

हरे घास के तिनकों में भी मोती उग आए,

अंगना में बैठ कर के गोरी गीत मल्हार गए...

 

सूखी सरिता कल-कल करती बहने लगी,

कुम्हलाई बगिया सुगंध से महकने लगी,

खेतों में हरी भरी फसलें लहलहाने लगी,

वसुधा के आंचल में खुशियों की बूंदे बरसने लगी..

 

सोंधी सी वो खुशबु अपने संग सहेज लाई,

तपती धरा की आज प्रतीक्षित प्यास बुझाई,

भीगते बदन आज फिर अतीत की याद आई,

आज बारिश की पहली फुहार आई.

 

अभिजीत आनंद 'काविश'

बक्सर, बिहार 

 

 

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