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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

अपनी बात

(सम्पादकीय सितम्बर 2021)


       कोविड महामारी ने यूँ तो बहुत कुछ प्रभावित किया है लेकिन जिस पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ा वो है विद्यार्थियों की शिक्षा | बुनियादी शिक्षा अर्थात प्राथमिक शिक्षा जो सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली की रीढ़ कही जाती है उसकी तो कमर ही तोड़ कर रख दी | कुछ बेसिक शिक्षकों ने  ऑनलाइन माध्यम से बच्चों की पढाई को सम्भालने का प्रयास किया तो सरकार ने ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा दिया | शिक्षा विभाग द्वारा भी बहुत सी रणनीतियाँ बनायीं गयी | इन सब प्रयासों का सकारात्मक प्रभाव तो दिखाई दिया लेकिन बहुत अधिक नहीं |

      वास्तविकता यही है कि शिक्षक के सानिध्य का विकल्प विद्यार्थी के लिए कुछ भी नही हो सकता | शिक्षक जब छात्रों के सामने खड़े होकर कुछ बोलते हैं तो वह किसी भी तरह के अच्छे से अच्छे ऑनलाइन वीडियो से बेहतर ही होते हैं | शिक्षा गुरु ही दे सकता है शेष माध्यम तो केवल सूचना मात्र ही दे सकते हैं | यही कारण है कि शिष्य को पास बैठा कर शिक्षा देने की परम्परा सहस्राब्दियों और युगों से चली रही हैं | अगर इससे बेहतर कुछ होता तो इस व्यवस्था का स्थान ले चुका होता |

  कुछ यही स्थिति कागज पर छपी पुस्तकों की भी है | आज असंख्य डिजिटल पुस्तकें ऑनलाइन उपलब्ध है लेकिन कागज पर छपी हुयी विषय वस्तु लम्बे समय तक स्मृतिपटल पर बनी रहती है | ये अधिक बोधगम्य होती हैं |

  एक बार फिर से प्रयास करना होगा कि बच्चे पुन: कागज पर छपी पुस्तकों से जुड़ें और जैसे- जैसे महामारी का खतरा कम होता जाए तो विद्यार्थियों को अपने शिक्षक का अधिक से अधिक सानिध्य मिले |

  गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ |

जय कुमार

सम्पादक 

 

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