मनसुखा की तीन बेटियां थी | अपने बच्चों को उसने, अपनी आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, उनकी अच्छी शिक्षा पर बल दिया |
मनसुखा क़ो पता था, कि समाज में अगर सम्मानजनक जीवन जीना है, और अपने बच्चों को परिस्थितियों से लड़ना सिखाना है, तो शिक्षा से आसान और सहज कोई दूसरा रास्ता नहीं है l
गांव में उपलब्ध संसाधनों से कक्षा 5 तक की पढ़ाई कराने के बाद, उसने कस्बे की तरफ रुख किया, और बच्चों को पढ़ाने के लिए उसने कस्बे में ही, अपने छोटे से फल की दुकान को खोल कर, अपने को आर्थिक रूप सबल बनाया | आमतौर पर लोग फल और सब्जी के कारोबारी को मानते हैं कि वह शिक्षा से दूर रहता है | परंतु मनसुखा को शिक्षा से बहुत जुड़ाव था | उसके अपने समय में वह हेड मास्टर साहब का बहुत प्रिय छात्र था, परंतु कक्षा 5 से ज्यादा नहीं पढ़ सका | आज जब सरकारी स्तर पर, कन्याओं के लिए शिक्षा योजनाएं चल रही हैं तब, मनसुखा बहुत प्रसन्न होता है | उसे लगता है कि भले ही उसकी अपनी बेटियों को पढ़ाने में उसने मशक्कत की हो, पर अब कोई मनसुखा बच्चियों की पढ़ाई के लिए तंग नहीं होगा |
कुछ साल पहले की बात है, तब उसके बच्चे पढ़ाई ही कर रहे थे, एक दिन एक मास्टर जी ने बच्चों बोलने की कला सिखाने के लिए, बच्चियों का एडमिशन कराने के लिए कहा था |
मनसुखा के बच्चे योग्य तो थे लेकिन वे संकोचवश बोलते नहीं थे, अपने को व्यक्त नहीं कर पाते थे |
मास्टर जी की भेंट, मनसुखा ने बहुत ही मन से बच्चों से करवाया, और बच्चों से मास्टर जी का परिचय कराने के दौरान, उसने कहा कि जो भी मास्टर साहब कहे तुम सभी उनकी बात को माना करो |
तीनों बच्चों ने कम्युनिकेशन स्किल को सिखने के लिए अपने पढ़ाई के समय से थोड़ा समय निकालकर, अपने ऊपर काम करना शुरू किया औऱ इस कला क़ो अपना हथियार बना लिया | नारी सशक्तिकरण के इस परिवेश में जब महिलाओं को बोलने की आजादी सिखाई जा रही है, तब क्या बोलना है और कैसे अपनी बात रखनी है इसको सीखना बहुत जरूरी भी है, ऐसा मास्टर जी ने हमेशा समझाया था | मनसुखा बहुत हद तक इस बात को जानता था, कि अपनी बात समय पर ना बोल पाने के कारण ही उसका एडमिशन छठी क्लास में नहीं हो पाया था, अन्यथा वह भी कही औऱ अच्छा काम करता | आज मनसुखा अपने बच्चों को बोलते हुए देखकर बहुत खुश होता है |
मास्टर जी वाली बात तो बहुत पुरानी हो गई, परंतु उसको आज उसकी याद क्यों आई! तीनों बच्चियों की शादी हो गई और तीनों बच्चियां अपने घर में अपने बच्चों को भी पाल रही हैं | मनसुखा ने अपनी बच्चियों को अभाव में भी जीना सिखाया था | उसने अपने बच्चों को शिक्षा और संस्कार कभी भी सुख को प्राप्त करने के लिए
अभी पिछले साल की ही बात है, मनसुखा अपनी बेटी जिसका नाम अनुपमा था और वह सबसे छोटी होने के कारण सबसे प्रिय थी, के ससुराल गया था | वैसे तो मनसुखा ने शादी करते समय, हर चीज को देखा था, परंतु होनी को कौन टाल सकता है | शादी के बाद 5 साल बाद रोजगार में घाटा होने के कारण घर की हालत खराब हो गई थी | गृहस्थी चरमराने की स्थिति में आ गई थी, परंतु अनुपमा ने अपने साहस और शिक्षा के बल पर, परिवार का आत्मबल बनाए रखा और धीरे-धीरे स्थिति मे सुधार हुआ | पिछले साल जब मनसुखा उसके घर गया तब उसे पता चला कि जिस रोजगार को देखकर उसने शादी की थी वह रोजगार एक गृह उद्योग स्वरोजगार के रूप मे अब अनुपमा संभाल रही है | अचार और पापड़ बनाने का जो काम उसके रुचि का था, उसको उसने लंबे पैमाने पर करने की सोची और अपने बोलने की कला से, जो मास्टर साहब ने उनको पढ़ाई के समय सिखाई थी, उसका लाभ लेकर इस काम का नेतृत्व किया | महिलाओं के बीच में बात करके और कंपनियों से बात करके उसने एक अच्छा कारोबार खड़ा कर लिया, और अपने साथ की अनेकों महिलाओं को रोजगार देने में सफल हो गयी |
मनसुखा यह देख कर खुश था, कि उसकी अनुपमा बेटी ने शिक्षा और स्वरोजगार को अपनाकर मनसुखा का नाम ऊंचा किया और अपनी विपरीत परिस्थितियों से बाहर निकलने में मदद पायी |
सबसे बड़ी बात तो उसे यहां यह लगी कि बेटी ने अपनी जिंदगी की कड़वाहट को कभी भी अपने पिता को नहीं बताया |
आज उसकी अनुपमा बेटी ने, अपने कमाए पैसे से सैनेटाइज़र औऱ मास्क भेज कर पिता के स्वास्थ्य की चिंता की | आज आपको लग रहा होगा कि यह बहुत आसान है, परंतु मनसुखा ने विपरीत परिस्थितियों में भी शिक्षा के ऊपर खर्च करके अपने बच्चों को विपरीत परिस्थितियों से बाहर निकलने की शिक्षा दी थी, औऱ आज उसने अपने प्यारी बेटी क़ो अपनी चिंता करते हुए देख कर ख़ुश था | बरबस ही उसे याद आ गया कि अनुपमा क़ो वह अपने आँख की तरई ही मानता था!
मनसुखा अब अपनी दूसरी दो बेटियों के घर भी जाने को सोच रहा था!
डॉ० सत्य प्रकाश
वैज्ञानिक, काशी हिंदू विश्वविद्यालय