सैंकड़ो बीमारियों का जन्मदाता : तनाव

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 दुःख का सबसे बड़ा कारण है-अज्ञानता । यदि बीमारी का ज्ञान शुरू में ही हो जाय तो थोड़े से प्रयास से ही हम उससे जल्दी बाहर आ सकते हैं ।अन्यथा बीमारी भयंकर रूप धारण कर लेती है अधिकांशतःतब हम कुछ नहीं कर पाते ।

         ज्यादातर नरम स्वभाव के भावुक इंसान ही तनाव का शिकार होते हैं।छोटी सी बात को बड़ा महसूस करना,छोटी सी समस्या से घबराहट होना,मन पर अजीब सा बोझ,अनिर्णय की स्थिति,निर्णय लेने में अन्तर्द्वन्द्व, अजीब सा डर,मन मे विचारों का अनियंत्रित प्रवाह, मानसिक अशांति,अंतर मन मे उदासी उनके व्यवहार में कब बस जाता है, पता ही नही चलता ।ऐसा व्यक्ति चिंता,अनिद्रा- (नींद बिल्कुल न आना,देर से नींद आना, बीच में नींद टूटना,सपनों भरी नींद सभी अनिद्रा के ही लक्षण हैं।) एंग्जायटी (anxiety)- (मन में अनियंन्त्रित विचार,घबराहट,उतावलापन) से आगे बढ़ता हुआ।अवसाद (depression) में पहुँच जाता है जहाँ वह अंदर ही अंदर घुटने लगता है, अपने को हानि पहुँचना यहाँ तक कि आत्महत्या का विचार भी उसको आने लगता है।

  तनाव के कारण:-

लम्बे समय तक डर,चिंता,घबराहट।

आस-पास के व्यक्तियों या वातावरण से मतभेद,कलह,संघर्ष ।

परिस्थितियों पर काबू न पा सकना।

दुःखद हादसा,अन्याय,अत्याचार या अपमान सहन करना ।

काम का अधिक दबाव ।

  तनाव के परिणाम:-

भोजन में अरुचि,भूख की कमी ।

हाजमा खराब।जिससे शरीर में पोषक तत्वों की कमी (जैसे विटामिन्स की कमी )व हानिकारक,विषाक्त पदार्थों (toxins)की वृद्धि होने लगती है। परिणामस्वरूप खून की कमी,चेहरा निस्तेज,कमजोरी, पिंडलियों में दर्द,श्वांस नली में परेशानी,बालों का अधिक टूटना,नाखूनों का न बढ़ना, आंखों,दाँतों व हड्डियों में कमजोरी आदि महसूस होती है ।

चिंता व घबराहट के समय आपकी सांस छोटी पड़ जाती है।पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलने के कारण शरीर के सभी अंगों का कार्य प्रभावित होता है।

अनिंद्रा के कारण मस्तिष्क को विश्राम नहीं मिलता जिससे शरीर व मस्तिष्क का तालमेल टूटने लगता है। एकाग्रता में कमी,छोटी-छोटी भूल लगना, भ्रम होना,नस-नाड़ियों में कमजोरी आदि होना ।समस्या अति बढ़ने पर दौरा पड़ना, मानसिक रोग,पागलपन भी हो सकता है।

वात-पित्त-कफ का असंतुलन होता है जिससे गैस,सिरदर्द,सिर में भारीपन,मुँह का स्वाद खराब होना,जोड़ों का दर्द,गले व पेट के विकार,सुस्ती,थकान,घबराहट, उदासी,चिड़चिड़ापन,गुस्सा आदि होता है।

शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

तनाव व उसके प्रभाव से कैसे बचें:-

बिना भूख के भोजन न करें।

प्रसन्न रहें, योगासन,व्यायाम करें।

भोजन हल्का व सुपाच्य लें।चबा-चबा कर खाएँ।शाम का भोजन अति हल्का व सूर्यास्त से पहले लें।

भविष्य में खुशी न ढूँढे।वर्तमान में प्रसन्न रहने का उपाय करें।

अकेले न बैठें, मिलजुल कर रहें।

यदि कार्य की अधिकता है तो सूचीबद्ध करके कार्य को समय पर पूरा करें।

जब हम किसी समस्या को लेकर कुछ घंटे,कुछ दिन लगातार सोचते रहते हैं तो लगातार सोचने की हमारी आदत हो जाती है, इससे बचें।

अपनी मनोदशा को बदलें।मनोदशा बदलने से दुनिया बदल जाती है।यथा दृष्टि तथा सृष्टि।

आपके पास 99%चीजें अच्छी हैं।बस 1% की कमी है।हमारा मन 99% को नहीं देखता,उस 1% में अटका रहता है।100%चीजें दुनिया में किसी के भी पास नहीं हैं।जो आपके पास है वह दुनिया में करोड़ों लोगों के पास नहीं है।अतः जो आपके पास है उसे ध्यान करते हुए हृदय की गहराइयों से दिन में तीन बार उस प्रभु को (अपने इष्ट देव को) धन्यवाद दें। "हे प्रभु मेरे पास यह है,यह है,यह भी है।मेरे पास बहुत कुछ है।तूने मुझे बहुत-बहुत-बहुत दिया है।तेरा बहुत धन्यवाद।"

अपनी समस्याओं को साझा करें।यदि ऐसा सम्भव नहीं है तो डायरी लिखें।

यदि परिवेश के लोगों से तनाव है, संभव हो तो तुरंत बदल दें।यदि पंगा अपनों से ही है तो प्यार से,वार्तालाप से समन्वय स्थापित करें। लड़े नहीं।अपने ही दाँतों से अपनी जीभ कट जाय तो कोई अपने दाँत नहीं तोड़ता।

गुस्सा व नाराजगी से बहुत जल्दी अपने स्वरूप(शान्त व खुश) में लौटने का अभ्यास करें। धैर्य व सहनशीलता अपनाएं।

दूसरों को बदलने की कोशिश न करें इससे आप तनाव में आते हैं।

प्रकृति को निहारें-उगता सूरज,चाँद, तारे, बादल, वर्षा, पौधों की हरियाली,सुबह की ताजी हवा को महसूस करें।

जीवन में मनोरंजन को शामिल करें।परंतु टी0वी0, मोबाइल आदि का प्रयोग सीमित ही रखें।ध्यान रहे प्रकृति से जितना हटोगे उतनी विकृति आएगी।रोचक पुस्तकें पढें। दूसरों की निस्वार्थ मदद करें।

सचेत होकर लंबी गहरी सांस ले-छोड़े।अनुलोम-विलोम,भ्रामरी प्राणायाम व धयान करें।इससे मन स्थिर होगा व विषम परिस्थितियों को झेलने की क्षमता बढ़ेगी।

सम्बन्धों में आत्मीयता महसूस करें।अच्छी अनुभूति से,योग-ध्यान से शरीर मे गुड़ हार्मोन्स रिलीज होते हैं जिससे तनाव कम होता है।

किसी लम्बी बीमारी या अधिक तनाव के चलते आपके तन-मन में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है।प्रभु भक्ति करें इससे नकारात्मकता (negative energy)घटती है व positive energy (सकारात्मक ऊर्जा)बढ़ती है, आत्मीय बल बढ़ता है।

रीढ़ के आसन करें-भुजंगासन,शलभासन,उष्ट्रासन मर्कटासन,वक्रासन, चक्रासन आदि से रक्त संचार ठीक होगा।सभी अंग सही कार्य करेंगें।

प्रतिदिन नाक में दो-दो बूंद बादाम रोगन या गाय का घी डालें।अनेक लाभ होंगे।

तीन चीजें मनुष्य को डराती हैं-अतीत की स्मृतियाँ, वर्तमान की आसक्ति और भविष्य का भय।अतीत को भूल जाएं,वर्तमान में परिश्रम करें,भविष्य को भगवान के भरोसे छोड़ दें।स्वयं पर विश्वास करें। भगवान पर विश्वास करें। 

तुलसी भरोसे राम के ,निर्भय हो के सोए।

अनहोनी होनी नही,होनी हो सो होए।।

      

           -पुष्पेंद्र कुमार सैनी (प्र०अ०)

            प्रा०वि०मानकपुर

            थानाभवन(शामली)

 

 

 

            

 

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