शक्ति स्वरूपा स्त्री

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        भारतीय इतिहास जितना विविधता पूर्ण एवं रोचक है उतना ही गहन विचारणीय भी है, संभवत यही कारण है कि इतिहासकारों में  मुद्दा विवादपस्त रहता  है कि भारत इतिहास क्रम में स्त्री की स्थिति क्या रही? 

वह  युग सुविदित  है  जब आदम काल में स्त्री व पुरुष दोनों ने परस्पर सहयोग से सभ्यताई  जीवन की नींव रख कर, नव युग का आरंभ किया और यह परिणाम विख्यात सिंधु, मिश्र,  बेबीलोनिया व चीन की महान सभ्यताओं के रूप में सामने आया। स्त्री अस्तित्व के लिए शुरू में कोई संघर्ष जैसी स्थिति नहीं थी, क्योंकि उस समय पुरुष व स्त्री मे  अधिक भेदभाव नहीं होता।  महान सिंधु घाटी सभ्यता से ही भारतीय संस्कृति ने स्त्री को शक्ति के स्वरूप में स्वीकार किया,  उत्खनन से प्राप्त हुए विशिष्ट मातृ देवी की प्रतिमा इस तथ्य की सत्यता को कठोर समर्थन प्रदान करती है कई इतिहासकार तो यहां तक मानते हैं कि संधैव  समाज मुख्यता मातृ  प्रधान था। आगे वैदिक युग में स्त्री को अर्धांगिनी के रूप में स्वीकारा गया,  उसे पुरुष का पूरक माना गया। लोपामुद्रा.  गार्गी जैसी विदुषी महिलाओं ने वैदिक ऋचाओं के निर्माण में सहयोग किया वे कई बार विवादों में विजय प्राप्त की। 

उत्तर वैदिक काल व  महाजनपद काल में स्त्री की दशा  में आश्चर्यजनक गिरावट, आई हालांकि मौर्य काल के विदेशी  वृतांत इस बात की ओर संकेत करते हैं कि'' स्त्रियों का अंगरक्षक एक दल  नंगी तलवारें लिए भारत सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की रक्षा करता है"। आगे गुप्त काल में सामाजिक कुरीतियों ने जोर पकड़ा वे हर्ष उत्तर काल में स्थिति यह हो गई कि स्त्री का बाल विवाह. सती प्रथा व  विधवा के रूप में शोषण आरंभ हुआ। 

आठवीं सदी में भारतीय इतिहास में इस्लाम का आगमन हुआ व शीघ्र ही दो नई संस्कृतियों के मेल से नवीन मिश्रित हिंद- इस्लामिक तहजीर  पर गंगा -जमुनी संस्कृति का उद्भव हुआ। किंतु इसी समय पर्दा प्रथा.बहु विवाह जैसी घोर निंदनीय प्रथाओ  ने जड़े जमा ली और इससे स्त्री की दिशा में और हीनता आई। सल्तनत काल में रजिया सुल्ताना (1236-40ईस्वी ) ने  दिल्ली के तख्त पर बैठकर भारतीय इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ रचा। मध्यकाल में हीन  दशा  के बावजूद' चित्तौड़ की महारानी कर्मावती जिसने गुजरात के नरेश बहादुर शाह द्वितीय से मेवाड़ साम्राज्य की रक्षा की,  चौरागढ़ की महारानी दुर्गावती जिसने स्वतंत्रता हेतु अकबर से ताउम्र संग्राम किया, और अहमदनगर की चांदबीबी जिसने मुगलों से अपने राज्य की रक्षा की,, जैसे विशिष्ट उदाहरण मिलते हैं। आधुनिक भारतीय इतिहास में स्त्री का उत्थान आरंभ हुआ, सन 57 तक  स्थिति यहां पहुंच गई कि स्त्री में चेतना जागने लगी,  पहले भी दक्षिण भारत की महान रानी चेन्नम्मा ने फिरंगिओ  से लोहा लिया था। सन 57 की क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली महारानी लक्ष्मीबाई व बेगम हजरत महल महान स्त्री रत्न है जिन की चमक  विश्व को चकाचौंध में डालती है। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भारतीय स्त्री का एक आदर्श स्वरूप विश्व के

सामने आया जब उन्होंने पुरुषों के साथ  कंधे से कंधा मिलाकर  इसमें अपना योगदान दिया और अंतः स्वतंत्रता प्राप्ति में बराबर भागीदारी दी। आजादी के बाद स्त्री शक्ति को नवीन पंख एवं उम्मीदों का विस्तृत गगन मिला।  आज विश्व जगत में भारतीय स्त्रियां भारत का नाम रोशन कर रही है,  किंतु साथ ही कुछ खेद पूर्ण विषय भी है जो स्त्री शक्ति की राह में प्रतिरोध का कार्य करते हैं जिन्हें शीघ्र मिटाने की आवश्यकता है। दहेज प्रथा,  दुष्कर्म, उत्पीड़न आदि ऐसे ही निंदनीय कृत्य है,।  जब भारतीय संस्कृति जो स्त्री को शक्ति के स्वरूप में दुर्गा कहकर वंदना करती है वहां ऐसी घटनाएं होना शर्मसार है। नवीनतम भारत के अंदर एक सुरक्षित स्त्री वातावरण होना आवश्यक है अतः इस दीपावली स्त्री सशक्तिकरण सुरक्षा व श्रद्धा का एक दीप ह्रदय में प्रज्वलित करना तो   बनता ही है।। 

 

 

 

सुरेंद्र सिंह रावत 

विद्यार्थी, कला तृतीय वर्ष

महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय

अजमेर (राजस्थान )

 

 

 

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