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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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गुरुवार, 3 सितंबर 2020

प्रकृति का सन्देश

 जिंदगी का जज्बा भी अब क्या रह गया ?

धूल के कण सी जिंदगी को इंसान सोचता रह गया ।

न जाने कब चूर -चूर है सपने ।

 न जाने कब दूर -दूर है अपने ।

अपने तो है पर अपनापन कहीं खो गया।

न जाने अहम् के बीच कहां गुम हो गया।

हर पल कुछ न कुछ पाने की चाह ने हमें वहशी बना दिया।

शील, सदाचार ,संस्कार सब को भुला दिया।

 ईश्वर ने कोरोना के रूप में यह संदेश भेजा है ।

मैं प्रकृति हूं अपना संतुलन बना लेती हूं ।

ए मानव अब भी समय रहते अपना संतुलन बना ।

 रोक खुद को नहीं तो फिर एक नश्वर इतिहास बना।

कैसा यह दौर है आ गया ।

बुलबुले सी जिंदगी को इंसान सोचता रह गया ।

 जाने -अनजाने प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं हम।

पुराने दायरो को छोड़ नए दायरे बनाने में जुटे हैं हम ।

दायरा कुछ भी हो बस कर्तव्य परायणता को ना त्यागना ।

नैतिक मूल्यों की दृष्टि से ही जीवन को निहारना।

यह दौर चाहे जैसा भी आ गया।

अनमोल जिंदगी के अर्थ को समझा गया।।

- सीमा रानी गौड़

 

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