प्राइमरी स्कूल में लोकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षा चलाने का आदेश हुआ।शुरू हुई उन बच्चों को ढूंढनेकी कोशिश जिनके पास एंड्रायड फोन थे ।कुछ दिनों की भागदौड के पश्चात आठ नम्बर उपलब्ध हो पाए । विद्यालय के स्टाफ को जोडा, कक्षाओं का ग्रुप बना कर कार्य देना प्रारम्भ किया । सभी शिक्षकों ने अपनेअपने विषयों काग्रुप पर कार्य भेजना शुरू किया । चार दिन बाद भी जब किसी बच्चे का रिस्पांस नहीं मिला तो मन व्यथित हो गया । सना के पिता का नम्बर डायल किया, "नमस्कार, मैं विद्यालय से शिक्षिका बोल रही हूँ, आपकी बेटी हमारे विद्यालय में कक्षा सातकी छात्रा है । हम हर विषय का कार्य ऑनलाइन भेज रहे हैं ।आपकी बेटी कार्य नहीं कर रही है ।" तपाक से उत्तर मिला:" मैडम जी, पहली बात तो यह है कि हमें फोन देके लड़कियो का दिमाग खराब ना करना, दूसरी बात हमारे यहाँ उन्हें फोन देना गुनाह माना जाता है ।" यह सब सुन कर भी दूसरे अभिभावक को फोन करने की हिम्मत की आखिर प्राइमरी के अध्यापक जो ठहरे ।"नमस्कार, मैं विद्यालय से शिक्षित बोल रही हूँ, आपकी बेटी हमारे विद्यालय में कक्षा आठ में पढती है । वह ऑनलाइन दिया गया कार्य नहीं कर रही है ।"फिर से बड़ा ही सटीक उत्तर "मैडम जी, तनिक काम-धंधा भी कर लेन दियो तम्हें तो काम ना है, आके कुर्सी पै ही तो बैठना "दिमाग की समस्त बत्तियां एक साथ झनझना उठीं। परन्तु हिम्मत हारना तो सीखा ही नहीं । अगला फोन मिलाया तो फोन किसी लेडी ने उठाया, इस बार शायद बात समझेगी हमारी कुछ आस बंधी परन्तु वही ढ़ाक के तीन पात जवाब बड़ा ही चटपटा मिला " जब स्कूल में आवेगी खूब मन की कर लियो, खूब पढाइयो छोरियो ने, अब कुछ रोटी टुकडा भी सीख लेन दो।" हिम्मत पस्त होने लगी थी परन्तु हमने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और निरंतर प्रयास करते रहे । न फोन करना छोड़ा न ही ऑनलाइन कार्य देना छोड़ा ।एन्ड्रोएड स्मार्ट्फ़ोन्स की संख्या भी बढ़ती जा रही है । कुछ रिस्पांस भी आने लगे हैं प्रयत्न करने वाले की कभी हार नहीं होती ।
-अलका शर्मा,
क०उ०प्रा०वि०भूरा
कैराना, शामली