जब हार-जीत का क्षण भर हो
तब करतल-ध्वनि हो जन-मन की
तो हो जाती इक बात नई।
मेघ-रहित आकाश हो सूना
जब निर्जन तपती मरुभूमि हो
तब हरियाली का स्वप्न जगे
तो हो जाती इक बात नई।
दीन-धर्म सब नष्ट हुआ,
जब मानव पथ से भ्रष्ट हुआ,
तब अंतर्मन चीत्कार करे
तो हो जाती इक बात नई।
असमंजस का हो तिमिर घना
जब पथ कंटक हो भरा हुआ
तब आशा का लघु-दीप जले
तो हो जाती इक बात नई।
नई स्फूर्ति,नया सवेरा,
जब मन पर नवविश्वास का डेरा
तब मानव नवनिर्माण करे
तो हो जाती इक बात नई।
उमा शर्मा (स.अ.)
पू.मा.वि.हरड़ फतेहपुर
थानाभवन,शामली।