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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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सोमवार, 10 अगस्त 2020

आओ बनाये गिटार


 
विषय: विज्ञान
कक्षा:  1 से 8 सभी के लिए उपयोगी।
आवश्यक सामग्री: माचिस की एक खाली डब्बी, पांच पुराने प्रयोग किए जा चुके रिफिल वाले पैन, रबर बैंड़, छेद करने के लिए कील या कोई नुकीली चीज इत्यादि।
निर्माण की विधि:  सबसे पहले एक खाली माचिस लेकर इसके अन्दर वाली ट्रे निकाल कर इसके लम्बाई वाली साड़ी में बराबर-बराबर दूरी पर चार-चार छेद करे। अब इन छेद में पैन से रिफिल निकालकर ड़ाल दे, इसके बाद इस ट्रे को वापस माचिस के खोल में डाल दे, अब माचिस के बाहर की ओर से रिफिल के सिरो में रबर बैच खिंचकर डाल ले, इस प्रकार चार रिफिल से होते हुए चार रबर बैंड़ माचिस की ड़ब्बी के ऊपर सट कर लग गयी हैं रबर बैंड को ड़ब्बी से थोड़ा ऊपर करने के लिए एक रिफिल को आधा काट कर माचिस की ड़ब्बी व रबर बैंड के बीच में दोनो किनारो की ओर प्रत्येक रबर बैंड़ के नीचे घुसा देंगे, इस प्रकार हमारे गिटार का बेस तैयार रहो है
इसे थोड़ा ओर गिटार की तरह दिखाने के लिए माचिस के एक साइड के  रिफिल के साथ दो खाली पैन रबर की सहायता से बांध देंगे इस प्रकार हमारा गिटार अब प्रयोग के लिए बिल्कुल तैयार है |

प्रयोग की विधि: इस गिटार का प्रयोग करने हेतू इसे इसमें लगे पैन से पकड़कर दूसरे हाथ में एक पैन या रिफिल की सहायता से रबर के ऊपर आराम से रगड़े या रबर को थोडा-थोड़ा खिंचकर छोड़े तो अपने कान के पास हमें संगीतमय ध्वनि  सुनाई पड़ती है, ध्वनि धीमी है परन्तु संगीतमय है,
सावधानियां:
माचिस में किए गये छेद ज्यादा बड़े न हो उतने ही हो की रिफिल बस ठीक-ठीक फिट हो जाये।
 रबर ज्यादा बड़ी या ज्यादा छोटी न हो, रबर में हल्का सा तनाव रहना चाहिए।
रबर को इतना अधिक ना खींचे कि रबर टूट जाये।
समय-समय पर रबर बदल देनी चाहिए व इस यंत्र को नमी रहित करते रहना चाहिए।
प्रयोग क्षेत्र: इस “गिटार” का प्रयोग विज्ञान विषय में ध्वनि बनने की अवधारणा समझने व संगीतमय ध्वनि के बारे में पढ़ सकते है, साथ ही साथ सामाजिक अध्ययन व कला संस्कृति के विषय में, वाद्य यंत्रों के बारे में, रूचि जागृत कर सकते है।
विशेष:  पढ़ते समय छात्र अपने सामने किसी प्रतिमान और वह भी क्रियाशील प्रतिमान को देखते है तो उनकी एकाग्रता बढ़ जाती है, तो वे अधिक अच्छी तरह सीखते है व ज्ञान को सरलता से आत्मसात करते करते है।  अपनी कक्षा में ध्वनि, वाद्ययंत्र इत्यादि को पढाते समय यदि इस प्रकार का प्रतिमान साथ हो तो छात्र एक जुड़ाव महसूस करते है, व मन लगाकर सीखते है।

नवीन कुमार शर्मा (स.अ.)
बालिका पूर्व माध्यमिक विद्यालय,  टपराना

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