विषय: विज्ञान
आवश्यक सामग्री: पानी रखने के लिए एक स्टील, प्लास्टिक या मृतिका का पात्र, 1 टूथपेस्ट ट्यूब का ढक्कन, एक कपड़ा सीलने वाली सुंई, एवं एक घर में बेकार पड़ी कोई भी चुम्बक व एक बारीक कील या आलपिन।
निर्माण की विधि : सबसे पहले लिए गए प्लास्टिक के ढ़क्कन में एक बारीक कील या आलपिन को गर्म करके बराबर वाली साड़ी में एक-एक छेद इस प्रकार करना है कि सुंई इन छेदो में से निकलकर ढ़क्कन के क्षैतिज बिल्कुल बीच में आ जाए । अब जो सुंई हमें प्रयोग करनी है, उसे ली गयी चुम्बक के ऊपर एक दिशा में लम्बवत रूप में वृत बनाते हुए 15 - 20 बार रगड़ना है, (ध्यान रहे कि सुंई को एक ही जगह आगे-पीछे की दिशा में न रगड़े)। इस प्रकार हमारी यह सुंई भी चुम्बक बन जाती है, अब इसे ढ़क्कन के छेदो में से ड़ाल देना है ।
अब हमे लिए गए पात्र में पानी भर लेना है, एवं इस पानी के ऊपर हमे यह ढक्कन, जिसमे हमारी चुम्बकीय सुंई है, इस प्रकार रखना है कि इसकी बन्द साइड पानी की ओर रहे व खुली साइड ऊपर की ओर रहे । ऐसा करते ही हम देखते है कि सुंई इस
ढ़क्कन को एक विशेष दिशा उत्तर-दक्षिण में लाकर स्थिर कर देती है, इसे यदि विस्थापित करते है उसके बाद भी यह उत्तर- दक्षिण दिशा में आकर ही ठहरता है, इस प्रकार सुंई का जो सिरा उत्तर दिशा में रूकता है उस ओर उत्तरी ध्रुव का निशान N लगा देंगे, स्वाभाविक रूप से दूसरी ओर की दिशा दक्षिण या S होगी ।
बस इस प्रकार तैयार है हमारा “दिशा सूचक यंत्र या कम्पास”
प्रयोग की विधि: जब भी हमें इस “दिशा सूचक यंत्र” का प्रयोग करना हो, बस इस पात्र में पानी भरे, ओर इस सुंई वाले ढ़क्कन को पानी पर रख दे, तो हम पृथ्वी पर किसी भी जगह दिशा ज्ञात कर पायेंगे, ढ़क्कन को 3-4 बार विस्थापित करके निश्चित कर लेंगे कि हमारा यंत्र ठीक कार्य कर रहा है ।
सावधानियां :
1. ढक्कन में छेद ज्यादा बड़े ना हो इतने ही हो कि सुंई इनके अन्दर ठीक -ठीक फिट हो
2. ढ़क्कन के अन्दर छेद दोनों ओर बीचों-बीच हो जिससे सुंई पानी के समानांतर रहे,
3. चुम्बक के ऊपर सुंई केवल एक ही दिशा में वृताकार रूप में ही रगड़े,
4. सुंई में चुम्बकीय गुण है या नहीं यह इसे किसी दुसरी लोहे की वस्तु पर छूकर निश्चित करते रहना चाहिए।।
प्रयोग क्षेत्र:
1. किसी भी जगह दिशा ज्ञात करने के लिए प्रयोग कर सकते है,
2. किसी बड़ी चुम्बक का चुम्बकीय क्षेत्र व चुम्बकीय रेखाओं को खोजने के लिए व
3. किसी विद्युत परिपथ के अन्दर विद्युत धारा की दिशा ज्ञात करने के लिए प्रयोग कर सकते है ।
विशेष: इस प्रकार के वैज्ञानिक यंत्र जब बच्चे घर में ही उपलब्ध वस्तुओं से स्वयं निर्मित करते है तो विज्ञान विषय में उनकी रूचि बढ़ती है, उन्हे विभिन्न यंत्रों के पीछे का वैज्ञानिक कारण समझने में सरलता होती है। साथ है साथ इस प्रकार की क्रियविधि से बालको के मन में यह विचार जाग्रत किया जा सकता है कि पुरानी, बेकार चीजों से भी कुछ अच्छा बनाया जा सकता है, जिससे हमारी पुरानी वस्तुओं के निस्तारण की समस्या का भी हल होगा व बालक मनोरंजन करते हुए खेल- खेल में ज्ञान भी प्राप्त कर पायेंगे ।
नवीन कुमार शर्मा (स.अ.)
बालिका पूर्व माध्यमिक विद्यालय, टपराना