सबक

सृजन



                खरगोश बड़े गुस्से में था । आज उसे एक बूढ़ी लोमड़ी ने बताया था कि कैसे उसके पूर्वज को एक कछुए ने दौड़ में हराया था । गुस्से में वो सीधा कछुए के घर पर पहुँचा और उसे दौड़ के लिए अगले दिन सुबह पीपल के पेड़ के पास पहुँचने के लिए कहा । कछुए ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वो माना नही । बहुत सोचविचार कर कछुआ सीधा गजराज हाथी के पास पहुँचा और बोला-"दादा मैं किसी स्पर्द्धा से पीछे नही हटता । लेकिन जिस तरह खरगोश बहुत गुस्से में है यह मुझे अच्छा नही लग रहा । इससे तो हमारे बीच में शत्रुता पनप जाएगी । आप कुछ कीजिये ।" गजराज कुछ सोचकर बोले-"तुम चिंता मत कर , कल मैं भी ठीक समय पर वहाँ पहुँच जाऊँगा ।"

    बात जंगल मे फैल चुकी थी।  बहुत से जानवर पीपल के पेड़ के नीचे इकट्ठा हो गये । गजराज दादा बोले-"दौड़ के लिए कुल चालीस मिनट का समय दिया जायेगा । जो भी सूखी नदी के पार खड़े बरगद के पेड़ को छूकर पहले वापस आएगा, वही विजयी होगा ।" निगरानी का काम मिट्ठू तोते को सौंपा गया।
    दौड़ शुरू हुई । दोनों ने अपनी पूरी शक्ति के साथ दौड़ लगायी । खरगोश कछुए से पहले सुखी नदी तक पहुँच गया । लेकिन यह क्या नदी में तो आज पानी था । यह नदी मनुष्य की हरकतों के कारण कब की सूख चुकी थी । बस कभी-कभी बारिश का पानी इकट्ठा होकर आ जाता है।  खरगोश को नदी पार करना मुश्किल लग रहा था । लेकिन उसे अपने पूर्वज के अपमान का बदला लेना था । आखिरकार उसने नदी पार करने की ठान ही ली ।
    खरगोश कई जगह डगमगाता लेकिन वापस आने का उसका कोई विचार नही था।  नदी में एक जगह ऐसी आयी कि खरगोश डूबने लगा । अब उसे अपने प्राण संकट में दिखने लगे । तभी किसी ने उसकी मदद की और किनारे तक पहुँचाया । यह कछुआ ही था । दोनो बरगद के पेड़ के नीचे पहुँच गए। तोते ने दोनों के द्वारा बरगद के पेड़ तक पहुंचने की पुष्टि की और वापस उड़ चला । खरगोश ने कछुए को अपने प्राण बचाने के लिए धन्यवाद दिया और बोला -'तुम जाओ, मैं अब नदी में उतरकर दोबारा अपने प्राण संकट में नही डालना चाहता ।" कछुए ने कहा - 'नही भाई, तुम ही जाओ वैसे भी अब थोड़ा ही समय बचा है । मैं कितना भी तेज दौडूं , निर्धारित समय तक नही पहुँच पाउँगा ।
तभी पेड़ और बैठे बूढ़े उल्लु ने उनके कुछ समझाया।  दोनों के चेहरे पर मुस्कान आयी । कछुए ने नदी में प्रवेश किया और खरगोश को अपनी पीठ पर बैठा लिया । नदी से बाहर आकर खरगोश ने कछुए को अपनी पीठ पर बैठाया और दौड़ पड़ा । पीपल के पास खड़े सभी जानवर अचम्भित थे । गजराज दादा समझ गए कि बूढ़े उल्लु ने अपना काम कर दिया । खरगोश और कछुआ दोनो चालीस मिनट से पहले ही दौड़ पूरी कर चुके थे । गजराज ने दोनों को विजयी घोषित किया ।  खरगोश और कछुए दोनो को बूढ़े उल्लु का मिलजुलकर काम करने और एक दूसरे की सहायता करने का सबक हमेशा याद रहा

 

                                                                              - जयकुमार





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