प्रकृति मानव को दी गई सबसे अमूल्य भेंट है जिस प्रकार हमें जब कोई भेट देता है तब हम इसका बहुत ध्यान रखते हैं और नुकसान न हो इस बात का भी ख्याल रखते हैं। आदिकाल में मानव जब पृथ्वी पर आया था तब उसके पास कोई भी साधन नहीं थे पर जैसा कि माना जाता है आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है ठीक उसी प्रकार मानव ने भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नित नए-नए प्रयोग किए और कामयाब भी हुए, हम धीरे-धीरे बढ़ रहे थे प्रकृति हमें सब कुछ दे रही थी और आज भी दे रही है जिसका हम अति से दोहन किए जा रहे हैं निजी स्वार्थ की खातिर यह भी नहीं देख रहे कि आने वाली पीढ़ी का क्या होगा वह सांस भी ले पायेगी या नहीं, वनों की अंधाधुंध कटाई, नदियों को दूषित करना, पॉलिथीन का हद से ज्यादा प्रयोग करना यह सब ऐसे चुनिंदा कारण है जिसने पृथ्वी पर मानव जीवन को बदल कर ही रख दिया और हम प्रकृति को नाराज किए जा रहे हैं जिसका खामियाजा हमें समय समय पर मिलता भी रहता है कभी सुनामी के रूप में तो कभी जंगलों मे लगे आग के रूप में ज्वालामुखी के रूप मे हैजा, प्लेग जैसी महामारी के रूप में, भूकंप के रूप में, बाढ़ के रूप में।
इंसान चाहे जितना भी खुद को ताकतवर समझे पर वह प्रकृति के सामने तनिक भी टिक नहीं सकता और इस बात का प्रमाण समय-समय पर हमारी प्रकृति देती रहती है इसलिए संयम बरते हैं ईश्वर के दिए गए अनमोल उपहार की इज्जत करें संसाधनों का प्रयोग अंधाधुन तरीके से ना करें याद रखे जो रिक्त स्थान हमने बनाया है | उसकी पूर्ति तो हमें स्वयं को ही करनी है। जैसे पेड़ पौधों को लगाकर पॉलीथिन का प्रयोग कम से कम करके पानी का किफायत से उपयोग करके और संयमित रह कर, वादा करें खुद से की हम ईंमानदार रहेंगे अपनी आने वाली पीढ़ी को वो सब देंगे जो हमें मिली थी विरासत मे।
अंकिता मिश्रा (स०अ०)
जूनियर हाई स्कूल कटरा बाज़ार
जनपद- गोंडा