आयो आयो बसन्त ऋतुमास

सृजन

आयो आयो बसन्त ऋतु मास
कोमल किसलय की अठखेलियाँ
अवलोकित पुष्पों पर नव तरुणाई 
चहुंओर सजी धजी दिखती गोरियां।

         खेतों में परस्पर आलिंगन करती
         इठलाकर पादप सरसों की डालियाँ
         कोयल कुंजन पराग मकरन्द गुंजन
         कानों में मधुर रस घोलती बोलियां।

शरद ऋतु का होता हुआ अवसान
मधुमास का प्रतिपल स्वागत गान
विटपों पर नूतन पत्रों की कोंपलें
सर्वत्र व्याप्त सुखदायी हरीतिमा।

          धरा ने भी ओढे लिए पीत वसन
          वल्लरी से लिपटा कुसुम कानन
          मन्द बहती बयार, रोमांचित तन
          सुगंध से आच्छादित  मन डोरियां।

ढोलक की थाप पर सुरमयी संगीत
फागुन गीत गाती मस्तों की टोलियां
नवरस से परिपूर्ण यहां जीवन संगीत
घूम घूम कर नृत्य करती हुई जोडियां ।

           उमंगों से भरकर नाचे मयूरी मन
           कुलांचेभरआल्हादित नीलगगनमें
           आँखों में समेटकर सौंदर्य धरा का
           स्वर्णिम स्वप्नों में खोई हुईअँखियाँ।

अलका शर्मा, 
क०उ०प्रा०वि०भूरा,
 कैराना, शामली

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