संभल कर चल

सृजन



है दूर तक अँधेरा और कोहरा भी गहरा।
संभल कर चल , रोशनी पर भी है पहरा।।

कोहरे को जरा ओस की बूंदों में बदलने दे।
राह में फैले घनघोर अँधेरो को छटने तो दे।।

माना उजाले के सहारे बहुत नही है पास तेरे,
बस जुगनू के उजाले पर खुद को चलने दे।

मंजिल की डगर मे बहकावे बहुत से है लेकिन,
कुछ मील के पत्थर के सहारे खुद को चलने दे।

कोई सिरा मंजिल का कभी तो दिख जायेगा।
अपनी पलकों को पल भर भी ना झपकने दे।।


-नीरज त्यागी
                                                             ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश )

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