भूख

सृजन


   
ट्रेन धीरे-धीरे चल रही थी ।मैं ऊपर वाली बर्थ पर लेटा हुआ देख रहा था ।एक लगभग बारह साल का लड़का कब से कुछ खाने को हर किसी से मांग रहा था ।शायद बहुत भूखा था एक हाथ से अपने नीचे सरकते गंदे पैंट को पकड़े और एक हाथ लोगों की तरफ फैला रहा था। लोग उसकी तरफ देख मुँह फेर लेते। वो भी शायद गलत डब्बे में मांग रहा था। उसे स्लीपर क्लास में माँगना चाहिए था..वैसे मैं खुद भी पेंट्री वाले का इंतजार कर रहा था कि पेंट्री वाला आये तो अपने साथ उसके लिए भी कुछ ले संकू। हालांकि मैं भीख देने का पुरजोर विरोधी हूँ । मगर उसे देखकर साफ लग रहा था वह भूखा है। शायद एक दिन पहले से...
अचानक तभी ठीक मेरे बर्थ के नीचे बैठी एक महिला उसे देख अपने बैग से कुछ निकालने लगी ।उसे ऐसा करते देख सामने बैठे एक सज्जन ने उन्हें टोका.....
"क्या कर रहीं हैं मैडम...
"भूखा है इसे कुछ खाने को दे देती हूँ...
"अरे भूखा नही...इनका गिरोह सक्रिय है इस तरह का।"
"गिरोह...
"हाँ.. पहले खाना माँगते हैं फिर पेट पकड़ कर तबियत बिगड़ने का नाटक करते हैं.. और इसके पीछे फिर पाँच छः लोग आ जाते हैं, जबरन वसूली करने...
"अच्छा!" 
"हाँ और क्या!"
वो लड़का घबराया हुआ उनकी बातें सुन रहा था। उस महिला ने उस बच्चे को फिर से देखा और उसे कुछ खाने को दे दिया। लड़का चुपचाप खाना लेकर हाथ जोड़ता हुआ डब्बे के गेट के पास चला गया। मैं अब भी सब चुपचाप देखे जा रहा था।
"आपने अच्छा नहीं किया..आगे से सावधान रहिएगा।"
"जी मुझे जो इस वक़्त सही लगा मैंने किया..वैसे आपने इस तरह की घटना कितनी बार देखी है?"
"जी देखी तो नहीं पर एकबार किसी से सुना है ये ऐसा करते हैं।" 
"आपने एकबार सुना है तो आप इनपर अविश्वास कर रहे हैं.. और हम ना जाने कितनी बार पढ़ते और सुनते हैं कि एक गरीब ने भूख से दम तोड़ दिया तो मैं फिर कैसे ना  इस भूख पर विश्वास करती..!"

बच्चा गेट के पास रोटी के टुकड़े को तन्मयता से खा रहा था उसकी आँखों में अब भूख नहीं उस महिला के प्रति कृतज्ञता थी.....

- पुष्पेन्द्र कुमार गोस्वामी
पूर्व माध्यमिक विद्यालय अजीजपुर




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