अगर ईश्वर सर्वव्यापी है, दुनिया के हर कण कण में है, तो फिर मंदिर किस लिए है.... ?"
बिल्कुल यही सवाल एक आंगतुक ने स्वामी विवेकानंद जी को पूछा था, तब उन्होंने इसका बहुत अच्छा उत्तर दिया था (तब वह आंगतुक की गाड़ी के टायर की हवा बहुत कम थी इसलिए वह थोड़ा चिंतित लग रहा था, स्वामीजी ने यह देखा और पूछा) "यह तुम्हारी गाड़ी के टायर को क्या हुआ है ?"
आंगतुक - "स्वामीजी, मेरी गाड़ी के टायर में हवा बहुत कम है, जल्द से जल्द कही से पंप का बंदोबस्त करना पड़ेगा"
स्वामीजी - "तो इसमें क्या पंप की ज़रूरत है, उसके वाल्व को निकाल दो, आसपास इतनी सारी हवा तो है"
आंगतुक - "स्वामीजी यह कैसे संभव हो सकता है, हमे हवा उसमे प्रेशर से भरनी पड़ती है तभी उसमे जान आएगी"
स्वामीजी - "तो तुम्हारे सवाल का जवाब तुम्हे मिल गया" (आंगतुक कुछ समझा नही)
स्वामीजी - "जैसे टायर में भरने वाली हवा अलग होती है, वैसे ही मंदिर का वातावरण और पवित्रता अलग होती है, हवा भी हर जगह है पर उसे महसुस एक पंखे के नीचे ही किया जा सकता है, वैसे ही मंदिर का वातावरण सबसे श्रेष्ठ होता है जो मन मे स्फूर्ति और ऊर्जा भर देता है" आज के हर युवा को स्वामी विवेकानंद की जीवनी पढ़नी चाहिए, उनका व्यक्तित्व बहुत अनोखा था । तेजस्विता और ज्ञान का भंडार..
प्रस्तुति : पुष्पेन्द्र कुमार गोस्वामी , पूर्व मा०वि० अजीजपुर