मन का भेद चलते हैं सबके संग जितनें दुनिया मे रंग,
कभी खुशी तो पल भर मे हो जाता रंज,
रंग-रंग की दुनिया मे कहीं ना लागे मन,
हो जाता मन कुंठित देख दुनिया के रंग।
अंदाज निराला,वेश निराला लोगों का,
पता ना चलता मन का भेद किसी का,
मन के ना जाने क्या है जो पलता रहता,
हैं तन के उजले मन के काले लोग निराले।।
दुनिया को जो बदलने की सोचते रहते,
खुद के अन्दर तनिक बदलाव ना लाएँ,
अपने को जो बदल लें ये चंचल प्राणी,
समझो सारी दुनिया ही खुद बदल जाएँ।
संकल्प ले करें परिवर्तन स्वयं के अन्दर,
हो जाएँ कायाकल्प ही सारे संसार कीं,
भेद मिटाकर मन के कर लो दिलो पर राज,
खाली हाथ जाना सबको मानो हमारी बात।।
कितना स्वार्थ रहता हैं लोगों के अन्दर,
अपने सुख मे तो नित प्रति खुशी मनाते,
दूसरों की खुशियों से मन को जलाते,
वो लोग कभी भी मन से सुख नहीं पाते ।।
- नीतू सिंह(स.अ.)