तत्परता
सभी शिष्य आज बहुत खुश दिखाई दे रहे थे | दीपावली की छुट्टियों के बाद आज पहली बार सब एक दूसरे से मिलकर हालचाल पूछ रहे थे | प्रोफेसर कक्षा में आ चुके थे | लेकिन उन्होंने किसी को भी चुप होने या शान्त बैठने के लिए नही कहा | वो शान्त भाव से अपने शिष्यों को देखे जा रहे थे | शीघ्र ही शिष्यों को अपराध बोध होने लगा | एक-एक कर सभी शिष्य चुप होने लगे | प्रोफेसर मुस्कुराए तो अवश्य लेकिन बोले कुछ नही | और शायद उनकी यही बात शिष्यों को परेशान कर देती है | अन्त में गौतम ने ही ज़िम्मेदारी संभाली |
“सर, आप कई मिनटों से आये बैठे हैं | आप ने हमें आते ही डांट कर चुप क्यों नही किया ?” हम तभी पढाई पर जुट जाते |” – गौतम ने खेद प्रकट करते हुए कहा |
“डाँटकर चुप करके भी कोई पढता है क्या?” प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले |
“और नही तो क्या सर ? मै तो जब शिक्षक बन जाऊँगा तब बच्चों को खूब डाँट-डाँटकर पढाया करूँगा ?” मोटे हर्ष ने खड़े होकर कहा |
सबने हँसना तो चाहा लेकिन हँसा कोई नही |
कुछ सोचकर प्रोफेसर बोले –“अच्छा मैं तुम्हें महात्मा बुद्ध की एक कहानी सुनाता हूँ | ध्यान से सुनना |”
“ठीक है सर” सभी ने एक स्वर में कहा |
प्रोफेसर ने बोलना शुरू किया –“ एक बार महात्मा बुद्ध के कुछ शिष्य उनकी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने निकले | रास्ते में उन्हें एक व्यक्ति मिला | उन्होंने उस व्यक्ति को महात्मा बुद्ध की शिक्षाएं देनी शुरू कर दी |”
अनिकेत बीच में ही बोल पड़ा –“सर, मुझे पता है कि ये कौन सी कहानी है | आगे मैं सुनाऊँ ?
“अवश्य” -प्रोफेसर ने अनुमति प्रदान की |
अनिकेत ने बड़े भावपूर्ण तरीके से कहानी को आगे बढाया – “बुद्ध के शिष्यों ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन उस व्यक्ति ने कोई ध्यान ही नही दिया | अन्त में सभी शिष्य बुद्ध के पास पहुँचे | उन्होंने बुद्ध के समक्ष अपनी समस्या रखी | बुद्ध ने उस व्यक्ति को अपने पास लेकर आने को कहा | बहुत समझाने-बुझाने पर वह व्यक्ति शिष्यों के साथ चलने को तैयार हुआ | व्यक्ति को बुद्ध के सामने प्रस्तुत किया गया | बुद्ध ने एक नज़र उस आदमी को देखा और अपने शिष्यों को आदेश दिया कि उसे पहले स्नान कराकर भोजन कराया जाए | तदुपरान्त उसे पुन: उनके समक्ष लाया जाए | शिष्यों को आश्चर्य तो हुआ लेकिन उन्होंने तुरन्त आज्ञा का पालन किया |”
“स्नान और भोजन आदि के पश्चात् उसे फिर से बुद्ध के पास लाया गया | उन्होंने स्नेह से उसे पास बैठाया और शिक्षा देनी शुरू की | उनके शिष्यों ने आश्चर्य देखा कि वह व्यक्ति ध्यान से बुद्ध की बातें सुन रहा है | अन्त में उस व्यक्ति ने बुद्ध की सभी शिक्षाओं का पालन करने का वचन दिया और और प्रणाम करके प्रसन्नचित मन से उनसे विदा ली |”
“शिष्यगण अच्चम्भित थे कि यहीं शिक्षाएँ तो उन्होंने भी उस व्यक्ति को दी थी लेकिन तब तो वह सुनने को भी तैयार नही था |”
प्रोफेसर ने अनिकेत को रुकने का इशारा किया और अपने विद्यार्थियों से पुछा –“आप लोग क्या सोचते हैं ? ऐसा क्यों हुआ ?”
सिद्धि ने उत्तर दिया –“सर, बुद्ध गुरु थे उनका सम्प्रेषण उनके शिष्यों की तुलना में बहुत अधिक प्रभावशाली रहा होगा |”
प्रोफेसर –“तुलनात्मक रूप से शिष्यों का सम्प्रेषण कौशल बुद्ध से कुछ कमतर तो रहा होगा लेकिन अगर वे शिष्य सम्प्रेषण में इतने अयोग्य थे तो वे उन्हें अपनी शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए भेजने से पहले और अधिक प्रशिक्षित करते या दूसरे वरिष्ठ शिष्यों को ही भेजते |”
अनिकेत जो अभी तक खड़ा ही था, बोला –“बात तो सही है, सर”
आकाँक्षा ने उत्सुकता से पूछा –“फिर क्या कारण रहा होगा, सर?
प्रोफेसर ने अनिकेत की ओर इस भाव से देखा कि कहानी को आगे बढाया जाए | लेकिन अनिकेत ने भी अपने चेहरे के भावों से व्यक्त किया कि मानो वो प्रोफेसर से ही आगे की कहानी सुनाने के लिए निवेदन कर रहा हो |
प्रोफेसर ने अनिकेत का मूक निवेदन स्वीकार किया और बोले –“बुद्ध देखते ही समझ गये थे कि वह व्यक्ति भूखा है और इसीलिए उसने उनके शिष्यों द्वारा दी गयी शिक्षाओं को ग्रहण नही किया | इसलिए उन्होंने पहले उस व्यक्ति वो स्नान और भोजन कराया | भूखा व्यक्ति शिक्षा ग्रहण नही कर सकता |”
“भूखे भजन न होये गोपाला” -हर्ष बीच में ही बोल पड़ा |
इस बार सब ठहाका मारकर हँसे |
“और बात केवल भूख की नही | शिक्षार्थी अगर किसी अन्य कारण से भी सीखने के लिए तत्पर न हो तो उसे कुछ भी सिखाया या पढाया नही जा सकता |” -प्रोफेसर ने बात को आगे बढाया |
“यही तो थोर्नडाईक के अधिगम ने तीन नियमों में से पहला नियम है |” -गौतम ने कहा |
सभी ने प्रशंशा के भाव से गौतम की ओर देखा |
“बिल्कुल, इसीलिए डाँटकर या धमकाकर किसी को पढ़ाना सम्भव नही | सबसे पहले शिक्षार्थी को सीखने के लिए तैयार करना ही होगा तभी वह दी गयी शिक्षा को ग्रहण करेगा |”
राघव जो अभी तक चुप और शान्त ही बैठा था वो बोला –“सर, तो क्या विद्यालयों में दिये जाने मध्याहन भोजन का भी इन बातों से कोई सम्बन्ध है ?”
प्रोफेसर बोले –“बिल्कुल है, नही तो जिस तरह शिक्षक विद्यालयों में मध्याह्न भोजन दिए जाने से असहमति प्रकट करते रहते हैं उससे तो यह अब तक बन्द ही हो चुका होता | बात शिक्षकों की भी सही है कि मध्याह्न भोजन में विद्यालय का बहुत सा समय लग जाता है जिसका उपयोग वे शिक्षण में कर सकते हैं | लेकिन सच्चाई ये भी है कि सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में अधिकांश बच्चे बहुत निर्धन परिवारों से होते हैं | मध्यावकाश के लिए पौष्टिक भोजन लंच बॉक्स में लेकर आना उनके सामर्थ्य से बाहर है |”
शिखा ने बात को आगे बढाया –“इसीलिए इन बच्चों को मध्यावकाश में गर्म पौष्टिक भोजन दिया जाता है मध्यावकाश में भोजन करके पुन:सीखने के लिए तत्पर हो सके |”
प्रोफेसर ने सहमति से सिर हिलाया |
विकेक ने हर्ष को छेड़ते हुए कहा –“इसीलिए मोटे भैया, बच्चों को डाँटकर नही पढाई के लिए तत्पर करके पढाना चाहिए |”
हर्ष झेंप गया लेकिन सभी हँस पड़े |
* * *
-जयकुमार