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सृजन समूह शामली, उत्तर प्रदेश

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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019

बिन पानी सब सून


       आधारभूत पंचतत्वों में से एक जल हमारे जीवन का आधार है । यदि जल न होता तो सृष्टि का निर्माण संभव न होता । बडी बडी सभ्यताएं और नगर नदियों के तट पर ही विकसित हुए । ऋग्वेद में जल को अमृत सदृश बताते हुए कहा गया है"अप्सु अंतःअमतं अप्सु भेषनं ।"
विगत वर्षों में तीव्र नगरीकरण, आबादी में निरंतर हो रही बृद्धि, औद्योगीकरण के विस्तारस्वरूप एक ओर सतही एवं भूमिगत जल के अनियंत्रित दोहन से भूजल स्तर में गिरावट आ रही है वहीं दूसरी ओर अतिशय जल प्रदूषण से विकराल जल संकट सामने आ गया है । संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा कुछ समय पूर्व'वाटर फोर पीपुल, वाटर फोर लाइफ' नामक रिपोर्ट के अनुसार 122 देशों में 60 देश भयंकर जल संकट का सामना करेंगे । मनुष्य द्वारा किए जारहे जल के अंधाधुंध दोहन के विषय में कहा जा सकता है कि-
     यह कलयुग का मानव अंधा होता जा रहा
    जीवन के पर्याय नीर को कदम कदम पर छल रहा
विभिन्न विद्वानों का मानना है कि यदि जल का अंधाधुंध दोहन नहीं रुका तो तृतीय विश्व युद्ध जल के लिए होगा । अमेरिकी समुद्री विज्ञानी सिल्विया अर्ले ने कहा है "No water... no life, no blue no green."
       उपरोक्त समस्या के भयावह स्थिति को देखते हुए आवश्यकता है कि निरन्तर घटते हुए जलस्तर को रोकने के साथ ही जल संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की भी आवश्यकता है । इस समस्या के प्रभावी नियंत्रण के लिए इन प्रदूषित पदार्थों के उत्पन्न होने वाले स्रोतस्थान पर रोक कर शोधन उपचार द्वारा शुद्ध किया जाना आवश्यक है । घरेलू अपशिष्ट, अपशिष्ट तेल, को कभी भी सीधे नदियों से न जोडा जाएं । अधिकाधिक वृक्षारोपण और आवश्यकता नुसार जल का उपयोग करके जल स्तर को बढाने की कोशिश करनी चाहिए । वर्षा के जल का संचयन सर्वाधिक उपयुक्त साधन है क्योंकि हमारे यहां वर्षा का जल यूहीं बहकर चला जाता हैं। तालाबों को पुनर्जीवित कर सफल क्रियान्वयन करके जल स्तर में बृद्धि की जाए। 
    "जल की महत्ता को हम कम कर नहीं सकते
     जल बिना जीवन में हम कभी रह नहीं सकते
    बचाएँ जल की एक-एक बूंद को साथ में मिलकर
     भूखे रह नहीं सकते, प्यासे रह नहीं सकते।"

-अलका शर्मा


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