योग्य प्रशासक

सृजन


प्रोफेसर देव शिष्यों के साथ अपने संकाय के परिसर में एक बड़े से वृक्ष के नीचे बैठे थे | सभी लोग घास पर ही बैठे थे | कक्षा के औपचारिक और घुटन भरे वातावरण से निकलकर इस तरह घास पर बैठकर शिष्यों को ज्ञान देना प्रोफ़ेसर को बहुत प्रिय है | प्रारम्भ में उनके कुछ शिष्यों को इस तरह घास पर पसर जाना अच्छा नही लगता था लेकिन अब सभी को वृक्ष के नीचे लगने वाली यह कक्षा बहुत अच्छी लगनी लगी थी | हाँ, एक बात अवश्य थी .. प्रोफेसर कभी भी इस कक्षा को निरर्थक बातें करने के लिए ढील नही देते थे | यह उनका अद्भुत कौशल ही था कि खुले में लगने वाली इस कक्षा में भी उतनी ही उपयोगी और सार्थक चर्चा होती जितनी कि कक्ष के अन्दर चलने वाली कक्षा में |
सिद्धि आज कई सप्ताह के बाद महाविद्यालय में आई थी |
प्रोफसर ने उससे पूछा- “अब तुम्हारे पिता जी का स्वास्थ्य कैसा है सिद्धि ?”
सिद्धि- “अब वे पूरे तरह स्वस्थ हैं सर, लेकिन अभी दवाइयाँ कई महीने तक और चलेंगी |”
प्रोफसर- “चलो अच्छा है , हम सबकी शुभकामनाएँ उनके साथ हैं |”
“इन्हें यहाँ बैठाकर शुभकामनाएँ ही देते रहोगे या कुछ पढाओगे भी ?” यह कड़क स्वर प्राचार्य जी का था | जो पीछे से गुजरते हुए ठिठक गये थे |
सभी शिष्यों के चेहरों की भाव-भंगिमाएं बदल चुकी थी और स्वय प्रोफसर की भी |
जब तक प्रोफसर देव कोई उपयुक्त उत्तर सोचते तब तक प्राचार्य जी आगे बढ़ चुके थे |
शिखा ने पुछा –“सर, ये क्या विचित्र बात है? प्राचार्य जी आपसे प्रश्न तो पूछ लेते हैं लेकिन फिर बिना उत्तर सुने ही आगे बढ़ जाते हैं | शायद ही कभी उत्तर सुनने के लिए रुकते हों |”
एक बार को तो सभी शिष्य हँस पड़े लेकिन फिर आराधना ने खड़े होकर जोर देकर पुछा – “सर, ये बात तो शिखा बिल्कुल सही कह रही है | ऐसा होता क्यों है ?”
गम्भीर आवाज़ में गौतम ने कहा- “क्योंकि वो जानते हैं कि देव सर चाहे जहाँ भी कक्षा जमाये वो हमेशा अच्छे से अच्छा और अधिक से अधिक ही पढ़ायेंगे |”
आराधना की शंका अभी दूर नही हुई थी – “लेकिन वो प्रश्न करके बिना उत्तर सुने ही क्यों निकल लेते है |”


प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले- “बताता हूँ, पहले बैठ तो जाओ |”
आराधना के नीचे बैठते ही उन्होंने फिर से बोलना शुरू किया –“जैसा कि गौतम ने बताया कि हम लोग चाहे जहाँ भी कक्षा जमाये हमेशा अपने विषय पर ही केन्द्रित रहते हैं | प्राचार्य जी इधर-उधर से निकलते हुए प्रश्न इसलिए उछाल देते हैं क्योंकि वो सभी को यह अनुस्मरण दिलाते रहते हैं कि महाविद्यालय में सभी का अनुश्रवण किया जा रहा है | जिससे कि  सभी लोग अपना कार्य अच्छे से करते रहें | घर में भी अगर घर का मुखिया सभी सदस्यों पर दृष्टि नही रखेगा तो कुछ सदस्य अपने कार्यों में लापरवाही और आलस्य करने लगेंगें जिसके कारण अन्य सदस्यों में असन्तोष उत्पन्न होने लगता है और पूरे घर की व्यवस्था बिगड़ जाती है |”
आकांक्षा ने बीच में टोका –“चलिए सर, ये बात तो मान ली | आपकी बात बिल्कुल सही है | लेकिन वो उत्तर सुनने के लिए रुकते क्यों नही ?”
  प्रोफसर इस बार ठहाका मारकर हँस पड़े –“अच्छा ये बताओ उनके प्रश्न का मैं क्या उत्तर देता ? और जो भी मैं उत्तर देता वो उन्हें पहले से ही पता है |” अब वो गम्भीर हो गये –“वास्तव में ऐसी स्थिति में वो केवल सामान्य से औपचारिक प्रश्न ही पूछते हैं | महत्वपूर्ण और गहन विषयों के लिए वो समय-समय पर हम लोगों को बैठक के लिए बुलाते हैं | अभी वो एक प्रश्न पूछकर बिना उत्तर सुने ही निकल गये क्योंकि वो जानते हैं कि हमारे बीच किसी प्रकरण को लेकर विचार-विमर्श चल रहा होगा या कोई बिन्दु पढाया जा रहा होगा ऐसे में अगर हम उनके प्रश्न का उत्तर देने लगेंगे तो शिक्षण में बाधा उत्पन्न होगी और समय नष्ट होगा | और आप लोग तो जानते ही हैं कि मैं उन्हें प्रिय हूँ लेकिन विद्यार्थियों का समय जिसमे वो सीख रहे होते हैं उनके लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है |  आप लोगों का समय व्यर्थ न हो इसीलिए वो बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये ही चले जाते हैं |
हर्ष बोला –“सर, हमारे प्राचार्य जी तो काफी समय महाविद्यालय में इधर-उधर घुमते रहते हैं जबकि हमारे पिछले महाविद्यालय जहाँ से हमने स्नातक की है वहाँ के प्राचार्य तो हर समय अपने कार्यालय में काम में लगे रहते थे उन्हें तो बिल्कुल भी फुर्सत नही होती थी | जबकि प्रोफसर लोग ज्यादातर समय बातों में लगे रहते थे और पढ़ाने में रूचि नही लेते थे | ऐसे मेहनती प्राचार्य को सारा स्टाफ लापरवाह मिला हुआ था |”
प्रोफसर बोले –“जो कुछ तुमने बताया उसके आधार पर तो यही स्पष्ट है कि उस महाविद्यालय के प्राचार्य जी योग्य प्रशासक नही थे | और यही कारण था कि वहाँ के प्रोफेसर लोग शिक्षण में लापरवाही करते थे |


राघव बोला- “सर, थोडा स्पष्ट करके समझाइये |”
प्रोफसर ने फिर से बोलना शुरू किया –“देखो जब कोई शिक्षक विद्यालय के प्रधान शिक्षक की भूमिका में आ जाता है तो उसे कुछ और अधिक कौशलों की आवश्यकता होती है | स्वयं मेहनत से काम करना अच्छी बात है लेकिन यह और भी बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह संस्था में कार्य करने वाले सभी लोगों से उनकी कार्यक्षमता के अनुसार पर्याप्त कार्य ले | यदि वो ऐसा नही कर पाता तो फिर चाहे वह स्वयं कितना भी परिश्रमी हो संस्था को उन्नति के मार्ग पर नही ले जा पाता | इसीलिए एक प्रधानाचार्य या प्राचार्य में एक योग्य शिक्षक के साथ-साथ योग्य प्रशासक के भी गुण होने भी आवश्यक हैं |
शिष्यों की शंकाओं का समाधान हो चुका था और प्रोफसर देव के सत्र का समय भी समाप्त हो चूका था | उन्होंने सभी को कक्षा-कक्ष में पहुँचने का आदेश दिया | शिष्यगण आज भी कुछ नई बात सीखकर खुश थे |

-जयकुमार




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