मुश्किल है अब ...

सृजन


मुश्किल है अब ...


मुश्किल है अब इन बढ़ते कदमों को रोक पाना,
बढ़ चुके है जो आगे , उन पद - चिन्हों को पीछे हटाना,
देखा है इन कदमों ने उन लाखों ठहरे कदमों को,
जिनके आगे मंजिल थी , पर चलने की राह नहीं,
नामुमकिन है , अब इन कदमों की राह को बदल पाना,
मुश्किल है अब इन बढ़ते कदमों को रोक पाना,
समझे है भाव इन कदमों ने, उन कुछ उलझे मनोभावों के,
जो हो चुके थे भावहीन, वक्त के प्रहारों से,
कठिन है अब इन भावों के ,आवेगों को बदल पाना ,
मुश्किल है , अब इन बढ़ते  क़दमों को रोक पाना |
अवगत है ये हृदय उन , असंख्य घुलते व्योम मेघो से ,
जो घुल गये थे  परिवर्तित , व्योम ऋतु कठिन आहारों से ,
दुर्गम है अब इन भारपूर्ण मेघों को बरसते रोक पाना ,
मुश्किल है अब इन बढ़ते कदमों को रोक पाना | 

                                                             ईरा कल्षाण (स०अ०)
                                        प्राथमिक विद्यालय मुस्तफाबाद, कांधला देहात
                                                                          शामली

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