कहानी कविताएं ग़ज़ल

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 उजाड़ कर ,

मेरी हरी हरी भरी बस्तियां,

 मुझ पर ही ,

कहानी कविताएं ग़ज़ल,

 लिखते हो।

छलनी कर ,

जंगल का सीना ,

कंक्रीट के जाल में ,

गमलों का व्यापार ,

तुम करते हो।

पनघट नदी नालों पर,

 अतिक्रमण कर,

 गन छूते मालों की,

 खिड़कियों से,

धूप को तुम सिलते हो।

डामरी- करण की चाह में,

पगडंडीया कहानी हो गई,

काटकर नीम पीपल को,

मधुर कलरव की ग़ज़ल,

 तुम चाहते हो।

बिगाड़ी ग्रह नक्षत्र की,

की चाल,

हुआ दूर जुगनूओं का थाल,

मधु,शहरों की,

 अविरल चकाचौंध में,

 सरस चांदनी की कविता,

 तुम ढूंढते हो।

 बिलख रहा,

सावन का बचपन,

बेचैनआंखों से झांकता,

 मौसम चक्र परिवर्तन ,

हाथ पर हाथ धरे तुमने,

 फिर कैसे?

 तुम प्रकृति से,

 जीवन चाहते हो।

*मधु वैष्णव ‘मान्या’*

जोधपुर,राजस्थान

 

 

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