सम्पादकीय

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 अपनी बात 

                            यह बड़ी विचित्र सी बात है कि जब विश्व के अन्य देश अपने भूतकाल  में कुछ ऐसा तलाशने के प्रयास कर रहें हैं जिस पर वे गर्व कर सकें, अपनी संस्कृति को विश्वपटल पर सम्मान दिला सकें तब हम भारतीय अपने इतिहास में उन चीज़ों को तलाशने में निरन्तर लगे रहते हैं जो हमारी संस्कृति को कलंकित करती हो, उसे नीचा दिखाती हो | हद तो इस बात की है कि भारतीय संस्कृति में जो खोट तथाकथित बुद्धिजीवी निकालते हैं वो कभी हमारी संस्कृति में कभी रहे ही नहीं | कुछ रहे भी तो उन्हें हम कब का त्यागकर आगे निकल चुके हैं | आगे भी तब निकल चुके थे जब दुनिया की अन्य संस्कृति अपनी शैशवावस्था में थी |

                       उदाहरण के लिए आजकल टेलीविजन पर प्रसारित एक कार्यक्रम में ऐसा दिखाया जा रहा कि जैसे विधवा पुनर्विवाह बस ढाई-तीन सौ वर्ष पहले ही प्रारम्भ हुआ | उससे पहले तो भारतवर्ष में कभी विधवा विवाह हुआ ही नहीं करते थे | कई बार तो ऐसा दिखाया जाता है कि जैसे प्राचीन भारतवर्ष में सभी विधवाओं को अनिवार्य रूप से सती ही होना पड़ता था | जबकि वास्तविकता तो यह है कि भारतवर्ष के लम्बे स्वर्णिम इतिहास में वो एक छोटा सा दौर था | दौर बुरा था, बीत गया | लेकिन हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी उस दौर को हमेशा दुनिया के जहन में जिन्दा ही रखना चाहते हैं |

                बालि-वध के पश्चात् उनकी पत्नी का सुग्रीव के साथ विवाह ठीक वैसी ही परम्परा को दर्शाता है जैसा कि आज भी हमारे समाज में अक्सर होता है | भगवान श्रीराम  की तीनों माताएँ तो वैधव्य के पश्चात् सती नहीं हुई | कौरवों के वध के पश्चात् उनकी पत्नियों के सती होने का कहीं उल्लेख नही मिलता | सच्चाई तो यह है कि सहस्रों वर्षों से हमारी परम्परा यही रही है कि पति की मृत्यु के पश्चात् यथासम्भव पति के अनुज से ही स्त्री का विवाह कराया जाता रहा है |

                        इसी तरह यह दर्शाने का भरसक प्रयत्न किया जाता है कि तथाकथित निम्न जाति के लोग समाज में कभी सम्माननीय नहीं रहे | जबकि ऐसे भी अनेकों सन्दर्भ हमारे इतिहास में मिलते हैं जो स्पष्ट करते हैं कि सभी वर्णों के लोगों को अपने कर्मों के अनुसार उचित सम्मान और महत्व दिया जाता था |

                      अपनी संस्कृति पर लांछन लगाने के कुत्सित कृत्य अब बन्द होने चाहिए | यदि कुछ अनुचित कभी हमारे भूतकाल में रहा भी है तो हम उसे कब छोड़कर आगे निकल आये हैं | वैसे देखा जाये तो हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता भी यही रही है कि हम उन व्यवहारों, परम्पराओं और आचरणों को त्यागते रहते हैं जो समय के साथ चलने में बाधा उत्पन्न करते हैं | शायद इसी कारण हमारी संस्कृति आज भी विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है जो आपने यथारूप में आज भी विद्यमान है |

            आइये अपनी संस्कृति की अच्छाईयों को अपनाएँ और दुनिया के सामनें रखें | आखिर जब भी दुनिया को मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ी तो हमारे पूर्वजों ने ही राह दिखायी | अब हम दिखायेंगें | क्रिसमस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ |

- जय कुमार

 

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