हम चले साथ हम बढें साथ,
ले हाथों मे हाथ ना हो उदास,
एक दूजे के साथ कर जाएँ पार,
हर भेद का गहरा समन्दर पार।।
जब जन्म एक हो कर्म एक,
क्यों दिल मे रहतें भेद अनेक,
कोमल मन होता हैं बच्चों का,
समान भावों से सीचों बार-बार।।
मनुष्य सब हैं एक समान,
ना कोई होता छोटा-बडा,
मान-सम्मान करें सभी का,
जात-पात रहित हो संसार।।
नव-चेतना, नव-युग का,
नव विचारों से परिपूर्ण होकर,
कर लें सुविचारों का संग्रह,
उपवन सा महकें घर-संसार।।
प्रेम से सीचें हर रिश्तों को,
ना हो मैल मन के अन्दर,
क्षमा-भाव भर के मन भीतर,
प्रेम वर्षा से भर दो संसार।।
मानव मे जब तक हैं मानवता,
तब तक जाने सबका सुख-दुख,
रहे सभी मिल-जुलकर आपस मे,
ना रहें ईर्ष्या-द्वेष मन के भीतर।।
- नीतू सिंह(स.अ.)