सम्पादकीय मई २०१९

सृजन

अपनी बात



          किसी ज़माने में आर्यभट्ट ने शून्य की खोज की थी । उन्होनें ही सबसे पहले दुनिया को 'पाई ' का मान बताया था । क्या होता अगर उन्होंने अपने गणितीय ज्ञान को दुनिया के साथ साझा न किया होता ?  न चाँद पर जाना सम्भव था और न ही मंगल पर यान भेजना । भारतवर्ष में एलोपैथिक औषधियों का प्रयोग मुश्किल से सौ वर्ष पहले शुरू हुआ। उससे पहले हज़ारो वर्षों से हमारे पूर्वज आयुर्वेद और योग जैसी विधाओं से ही मानव को कष्टों और व्याधियों से दूर रखते आ रहे हैं । क्या होता अगर धन्वंतरि, सुश्रुत और चरक जैसे ज्ञानी वैद्य अपने ज्ञान को अगली पीढ़ी को हस्तान्तरित ही न करते ? आज भी हमारे देश मे ज्ञानियों को कमी नही । भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिक इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं । शिक्षा के क्षेत्र में भी दिन-प्रतिदिन उल्लेखनीय कार्यों के लिए विद्वानजन सम्मानित होते रहते हैं । अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों के नये-नये शोध और आविष्कृत तकनीकों को उनके अनुवर्ती ही बेहतर समझ सकते हैं और उन्हें उपयोग में लाकर देश और समाज का हित कर सकते हैं । कुछ इस तरह ही नित्य-प्रति सम्मानित होने वाले शिक्षक भी यदि उन विधियों, प्रविधियों और युक्तियों को अपने अनुवर्ती या साथी शिक्षकों से साझा करेंगें तो देश की शिक्षा व्यवस्था के उन्नयन में सहायता मिलेगी । मैं व्यक्तिगत रूप से निरन्तर नवीन शिक्षण सूत्रों की जानकारी के लिए लालायित रहता हूँ । उस समय मुझे घोर आश्चर्य होता है जब पुरुष्कृत शिक्षकगण उन चीजों को खुले तौर पर साझा नही करते जिनके लिए उन्हें श्रेष्ठ शिक्षक का तमगा मिला होता है । श्रेष्ठता की बातें सरकार और शिक्षक के बीच ही क्यों रहे ? बच्चों और शिक्षकों तथा शिक्षकों और शिक्षकों के बीच क्यों न हों ? गुरुजनों को चाहिए कि वे अपने ज्ञान के दीपक से दूसरों के दीपकों को भी प्रज्ज्वलित करें ।
    विश्व मे ज्ञान का प्रकाश फैले और शान्ति की स्थापना हो, इसी कामना के साथ बुद्ध-पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं ।
-जयकुमार
 
 
 



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